विधानसभा चुनाव : सिवनीमालवा में सबसे ज्यादा, होशंगाबाद में सबसे कम थे नोटा वाले मतदाता

देनवापोस्ट एक्सक्लूसिव/नर्मदापुरम / दीपकशर्मा/ आचार सहिंता के बाद एक ओर जहां अभी तक ज्यादातर पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा नही की है। वही दूसरी ओर जिले की चारों विधानसभा क्षैत्रों में कई पार्टियां चुनावी मैदान में प्रत्याशी उतारने को तैयार हैं। पिछली बार की तरह इस बार भी कई निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव में उतरने को बेताब हैै। यह बात और हैं कि मतदाता केवल कुछ पार्टियों को ही महत्व देते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान के आंकड़ों पर गौर करे तो चारों विधानसभा क्षैत्र में आधे से अधिक प्रत्याशियों को नोटा ( इनमें से कोई नही ) से भी कम मत प्राप्त हुए थे। पिछले विधानसभा चुनााव यानी वर्ष 2018 में हुए मतदान की बात करे तो सिवनीमालवा विधानसभा क्षैत्र में सबसे अधिक मतदाताओं ने नोटा में मतदान किया था। यहां कुल 222992 मतदाताओं में से 3897 मतदाताओं यानी 2.06 फीसदी ने नोटा का विकल्प चुना था।यहां के कुल 15 प्रत्याशियों में से 11 प्रत्याशियों को नोटा से भी कम मत मिले थे।
पिपरिया विधानसभा क्षैत्र की स्थिति भी लगभग सिवनीमालवा जैसी ही थी। यहां कुल 206952 मदाताओं में से 3842 मतदाताओं यानी 2.27 फीसदी ने नोटा को मतदान किया था। यहां कुल 10 प्रत्याशियों में से 6 प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले थें। वही सोहागपुर विधानसभा क्षैत्र कुल 220262 मदाताओं में से 2618 मतदाताओं यानी 1.44 फीसदी ने नोटा को मतदान किया था। यहां कुल 14 प्रत्याशियों मैदान में थे। इनमें से 10 प्रत्याशियों को नोटा से बहुत कम वोट मिले थें।
अब बात कर लेते होशंगाबाद विधानसभा क्षैत्र की होशंगाबाद क्षैत्र की स्थिति इस मायनें में थोड़ी अलग नजर आती हैं।यहां कुल 207283 मतदाताओं में से 1369 मतदाताओं ने यानी 0.87 फीसदी ने नोटा में मतदान किया था। कुल 15 प्रत्याशियों मे से 11 प्रत्याशियों को नोटा से कम वोट मिले थें। नोटा में हुए अधिक मतदान के पीछे अधिकारियों का तर्क है कि मतदाताओं मे जागरूकता की कम रही थी।
नोटा का विकल्प देने के पीछे की मंशा
पिछले चुनाव की तरह इसबार भी इवीएम मशीन में नोटा का बटान शामिल होगा । मतदाताओं लिए यह विकल्प इसलिए दिया जाता कि मतदाता चुनावी मैदान में उतरें किसी भी प्रत्याशी को मतदान नही करना चाहता हैं। तो वे कोई नही यानी नोटा का बटन दबा सके। नोटा का बटन दबाने का अर्थ यह होता हैं। चुनावी मैदान में उतरा एक भी प्रत्याशी मतदाता को पसंद का नही हैं।