कम मजदूरी और समय पर भुगतान न होना, मनरेगा योजना पर पड़ा भारी, जानिए क्या कहते हैं अधिकारी

मनरेगा योजना में 213 रुपए मजदूरी दी जाती है। इस योजना में काम करने वाले परिवारों को मजदूरी के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। जबकि अगर मजदूर शहर व गांव में जाकर निजी मजदूरी करता है तो उसे प्रतिदिन 400 से 500 रुपए नगद मजदूरी मिल जाती है। यही वजह है कि मजदूरों का मोह मनरेगा से भंग हो रहा है और मजदूर इस योजना से दूरी बनाकर निजी मजदूरी करना पसंद कर रहे हैं।

सरकार ने गांवों में रोजगार के अभाव में हो रहे पलायन को रोकने के उद्देश्य से मनरेगा योजना शुरू की थी। इससे काफी हद तक पलायन रोकने में मदद मिली थी। लेकिन अब मनरेगा में मजदूरी कम मिलने और कई बार चक्कर लगाने के बाद भी भुगतान न होने से मजदूरों का मनरेगा से मोहभंग हो रहा है। मनरेगा के बजाय मजदूर गांव व शहर में मजदूरी करना ज्यादा लाभदायक मान रहे हैं।

मनरेगा योजना में 213 रुपए और बाहर मिल रही 400 से 500 रुपए मजदूरी


मनरेगा योजना में 213 रुपए मजदूरी दी जाती है। इस योजना में काम करने वाले परिवारों को मजदूरी के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। जबकि अगर मजदूर शहर व गांव में जाकर निजी मजदूरी करता है तो उसे प्रतिदिन 400 से 500 रुपए नगद मजदूरी मिल जाती है। यही वजह है कि मजदूरों का मोह मनरेगा से भंग हो रहा है और मजदूर इस योजना से दूरी बनाकर निजी मजदूरी करना पसंद कर रहे हैं। गांवों में मजदूरों द्बारा मनरेगा के अंतर्गत काम न करने से मनरेगा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने की मंशा जिले में सफल नहीं हो पा रही है।

केवल 219 परिवारों को 100 दिन का काम

इस वित्तीय वर्ष में अब तक केवल 219 परिवार ऐसे हैं जिन्हें 100 दिन या उससे ज्यादा काम मिला है। जिले के आठ इलाकों में 16,977 परिवार मनरेगा जॉब कार्ड धारक हैं। इनमें जसपुरा में 6 कमासिन में 8 और तिन्दवारी ब्लॉक में सिर्फ 7 परिवार को ही 100 दिन का काम मनरेगा योजना के तहत मिला है। इस बारे में मजदूरों का कहना है कि मनरेगा में काम करने से जहां कम मजदूरी मिल रही है। वहीं मजदूरी का भुगतान कराने के लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कब मजदूरी मिलेगी। जबकि दूसरे जगह मजदूरी करने पर न सिर्फ दोगुना पैसा मिलता है बल्कि नगद मिलता है। इस समय महंगाई बढ़ती जा रही है, ऐसे में कम मजदूरी से परिवार का खर्चा चलाना बहुत मुश्किल है।

इस वर्ष मनरेगा योजना का आंकड़ा देखा जाए तो बबेरू ब्लॉक में 56, बड़ोखर खुर्द में 25, बिसंडा ब्लॉक में छह, जसपुरा ब्लॉक में आठ और महुआ ब्लॉक में 40 नरैनी में 37 और तिंदवारी ब्लॉक में सिर्फ 7 परिवारों को 100 दिन या उससे अधिक का काम मिला है। इनमें जसपुरा कमासिन और तिन्दवारी ब्लॉक रोजगार देने में सबसे फिसड्डी हैं।

क्या बोले अधिकारी
इस बारे में उपायुक्त मनरेगा बांदा राघवेंद्र तिवारी का भी मानना है कि मनरेगा में कम मजदूरी होने से गांव के मजदूर शहर में मजदूरी करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस योजना के अंतर्गत मजदूरी का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है। हालांकि हमारी कोशिश होती है की इस योजना के तहत काम करने वाले मजदूरों का जल्द से जल्द भुगतान कराया जाए

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