हाई कोर्ट ने कहा कि एमएस रेड्डी और शरत रेड्डी ने स्वतंत्र इच्छा से अपना बयान दिया है। यह अदालत ट्रायल कोर्ट की जगह नहीं ले सकती और मिनी ट्रायल नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा, ”ईडी के पास पर्याप्त सामग्री थी, जिसके कारण उन्हें आरोपियों को गिरफ्तार करना पड़ा। केजरीवाल की वजह से हुई देरी का असर उन लोगों पर भी पड़ा जो हिरासत में थे। केजरीवाल का शामिल न होना एक सहायक फैक्टर था न कि एकमात्र फैक्टर।” बेंच ने साफ किया कि यह दलील भी खारिज की जाती है कि अरविंद केजरीवाल से वीसी के जरिए पूछताछ की जा सकती थी। कोर्ट ने कहा, ”जांच कैसे की जानी है, यह तय करना आरोपी का काम नहीं है। आरोपी की सुविधा के अनुसार यह नहीं हो सकता है।”
याचिका पर फैसला सुनाते समय दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अप्रूवर का कानून 100 सालों से अधिक पुराना है। यह कोई एक साल पुराना कानून नहीं है, जिससे यह लगे कि इसे याचिकाकर्ता को झूठा फंसाने के लिए बनाया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस अदालत की राय है, कई बयानों के बीच, रेड्डी और राघव (अप्रूवर) के बयानों को अविश्वसनीय करार दिया गया है। अदालत का कहना है कि अप्रूवर को क्षमादान देने पर संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने जैसा ही है।
आदेश सुनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि वह अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर विचार नहीं कर रहा है, केवल गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका पर फैसला कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि मुकदमे के दौरान सरकारी गवाहों के बयानों पर निर्णय लिया जाएगा, तब अरविंद केजरीवाल जिरह करने के लिए स्वतंत्र होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालतों का सरोकार संवैधानिक नैतिकता से है, न कि राजनीतिक नैतिकता से। गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल के ईडी रिमांड को अवैध नहीं ठहराया जा सकता है। इसके साथ ही, हाई कोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।