भारत में चुनावों और प्याज के बीच ऐसे लगता है कोई नाता है। पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की रणभेरी के बीच पिछले चार दिनों में प्याज की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। इससे जनता तो परेशान है ही, सत्तरूढ़ दलों के नेता भी चिंतित हैं, जबकि विपक्ष गदगद। उसे ऐन चुनावों के बीच बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया। एचटी की खबर के मुताबिक पिछले हफ्ते खुदरा बाजारों में प्याज 30 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम पर उपलब्ध था, लेकिन सिर्फ दो दिन पहले, यह बढ़कर 80-100 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया।
जमाखोरी से बढ़ रही प्याज की कीमत: विशेषज्ञों के अनुसार, इस उछाल के पीछे मुख्य कारण प्याज की जमाखोरी है, जिसकी वजह से सप्लाई में कमी हो गई और कीमतें इस स्तर पर पहुंच गईं। लुधियाना पंजाब के न्यू वेजिटेबल मार्केट के उपाध्यक्ष रिशु अरोड़ा ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘इस उछाल के पीछे मेन वजह यह है कि लोग बाजार में प्याज के आखिरी स्टॉक को जमा कर रहे हैं। इससे कमी पैदा हो रही है, जिससे कीमतें बढ़ रही हैं। अगर इसे नियंत्रित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले महीनों में कीमतें ₹120-150 प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकती हैं।”
ठीक एक हफ्ते पहले प्याज थोक बाजारों में ₹20-25 प्रति किलोग्राम बेचा जा रहा था,। फुटकर में यह ₹35-50 प्रति किलोग्राम मिल रहा था। हालिया उछाल के बाद, थोक बाजारों में प्याज की कीमतें बढ़कर थोक में ₹45-50 प्रति किलोग्राम हो गई हैं। शहरों के खुदरा बाजारों में प्याज ₹80-100 प्रति किलोग्राम के रेट से बिक रहा है।
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प्याज के कब गिरेंगे भाव: प्याज की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने और घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। केंद्र सरकार ने प्याज निर्यात पर 800 डॉलर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) लगाया है। यह प्रतिबंध 29 अक्टूबर 2023 से 31 दिसंबर 2023 तक प्रभावी रहेगा। उधर, थोक विक्रेताओं का अनुमान है कि प्याज की नई फसल दिवाली के बाद या नवंबर के आखिरी सप्ताह तक बाजारों में आ जाएगी, जिसका मतलब है कि उपभोक्ताओं को कुछ समय के लिए इसकी कीमत में उछाल झेलना होगा।