दीपक शर्मा/नर्मदापुरम : गांवों में विकास कार्य, भवनों, सड़कों आदि निर्माण कार्य के लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार ने तो सरपंचों को जिम्मेदारी दी हैं। लेकिन निर्माण कार्य के प्रारंभ से लेकर कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त करने एवं राशि आहरण करने में होने वाली दिक्कतों के कारण क्षेत्र के अधिकांश सरपंचों ने पचड़े में पड़ने के बजाय ठेकेदारों से काम करना ही ज्यादा मुनासिब समझा।
नर्मदापुरम जिले की सात जनपद में 425 ग्राम पंचायतों में अधिकतर पंचायतों में सभी कार्य ठेकेदार द्वारा ही कार्य कराया जा रहा है। जिम्मेदार अधिकारियो को जानकारी होने के बाद भी ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगाने के बजाया अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। नर्मदापुरम जिले की सातों जनपद की अधिकतर पंचायतों में ठेकेदार हावी है और पंचायत में निर्माण कार्य ठेकेदारो द्वारा ही किए जा रहे हैं । निर्माण कार्यों के लिए ठेकेदार सरपंचों को पांच से दस प्रतिशत तक कमीशन भी देते हैं। ऐसे में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। सरपंच को कमीशन देकर ठेकेदार उसका मुंह बंद कर देता है। जिले की अधिकतर पंचायतो में ऐसा ही खेल ठेकेदार के माध्यम से खेला जा
रहा है।
सरपंच किसी भी निर्माण कार्य की स्वीकृति से लेकर उसको बनाने में लगने वाली सामग्री, निर्माण के पश्चात मूल्यांकन सत्यापन तथा अंत में राशी आहरण के लिए जनपद कार्यालय के चक्कर लगाता है। कभी सीईओ नहीं आए तो कभी इंजीनियर नही मिलते और मिल भी गए तो काम होगा इसकी गारंटी नहीं है। इससे परेशान होकर सरपंच ठेकेदार को काम सौंप कर फ्री हो जाता है। ठेकेदार अपने प्रभाव का इस्तमाल कर इन सारे कामों को मैनेज कर लेता है। जिले की जनपदों में कुछ ऐसे ही ठेकेदार वर्षो से सक्रिय हैं। जो पंचायतों का कार्य बेधड़क कर रहे हैं। ठेकेदार बकायदा निर्माण कार्य से संबंधित फाइल लेकर जनपद आते हैं। ठेकेदारों द्वारा इंजीनियर, एकाउंटेंट से मिलकर काम निपटा लेते हैं। इस चक्कर में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को ताक पर रख दिया जाता हैं।