Narmadapuram News : कांग्रेस के लिए बड़ा चैलेंज, क्या गुटबाजी से उबर पाएगी? भेद सकेगी BJP का किला?

सोहागपुर/ दीपकशर्मा : आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के किले में कांग्रेस (Congress vs BJP) कितनी सेंध लगा पाती है, ये तो नतीजे बताएंगे, लेकिन अभी आलम यह है कि यहां हैट्रिक लगा चुकी भाजपा के सामने कांग्रेस अपनी अंदरूनी कलह में ही उलझी हुई है। जहां बीजेपी प्रदेश भर की सीटों पर करीब 150 उम्मीदबारों को टिकट देकर मैदान में उतार दिया वही अभी कांग्रेस ने अभी तक कोई सूची ही जारी नही की है।सोहागपुर सीट का चुनाव इतिहास (Poll Data) बताता है कि यहां पार्टी आधारित वोटिंग (Voting Pattern) ही होती रही है, ऐसे में पार्टी के सामने स्पष्ट तौर पर चुनौतियां ज़्यादा कड़ी हैं। सोहागपुर विधानसभा में यह बड़ा सवाल है कि क्या कांग्रेस अपनी गुटबाज़ी की बीमारी (Factionalism in Congress) से छुटकारा पा सकेगी?

2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे मध्यप्रदेश में सरगर्मियां हैं, तो उसकी आंच सोहागपुर तक भी पहुंच ही रही हैं। सोहागपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की एकजुटता का इतिहास तो बताता ही है कि यहां क्यों भाजपा पिछली तीन बार से काबिज़ रही है, वहीं मौजूदा हालात भी साफ संकेत कर रहे हैं कि यहां कांग्रेस को अपनी अंदरूनी समस्याओं से जल्द निपटना होगा।

विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारियां ज़िले में तेज़ हो गई हैं। सोहागपुर में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस अपनी रणनीति पर काम तो कर रही है, लेकिन उसके भीतर की मुश्किलें फिलहाल कितनी सुलझ सकी हैं, इस पर सवालिया निशान ही है. एक नज़र में देखें तो सोहागपुर विधानसभा बनने के बाद  इस विधानसभा सीट पर अब तक 3 बार चुनाव हुए हैं और भाजपा को तीनों ही बार जीत मिली है वही कांग्रेस को मुह की खानी पड़ी। लेकिन 2008 से अब तक भाजपा के विजयपाल सिंह ही विधायक के तौर पर यहां काबिज़ हैं. क्या इस बार कांग्रेस कोई बदलाव ला पाएगी?

कांग्रेस को भारी पड़ती रही है गुटबाज़ी

सोहागपुर विधानसभा में पहले चुनाव में भाजपा विजयपाल सिंह ने जो जीत का जो बिगुल फूंका उसे बुजने नही दिया। उसके बाद दूसरे, फिर तीसरे चुनाव में जीत की हैट्रिक लगा दी। यह कहना गलत नही होगा कि भाजपा की हैट्रिक में कांग्रेस की गुटबाज़ी का बड़ा हाथ रहा। सोहागपुर सीट पर कांग्रेस में जिस तरह अंतर्कलह है, वह उसके लिए खतरे की घंटी अब भी है। जानकार कह रहे हैं कि पार्टी ने अपनी समस्‍याओं को जल्द न समेटा तो भाजपा तो दूर वह अपनों से निपटने में ही ‘खप’ जाएगी।

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