चंबल के पानी का प्रभाव या भूमि का असर भिंड क्षेत्र के व्यक्तित्व में एक अलग ही रुबाब के रूप में झलकता है। कभी दस्यु समस्याओं से पीड़ित रहे इन क्षेत्रों में अब शांति का माहौल है। सर्वोदयी विचारक व संत विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर किए गए दस्युओं के समर्पण ने इस क्षेत्र को एक विकराल समस्या से निजात दिला दी है।
जब भिंड का उल्लेख हो और बीहड़ क्षेत्रों का उल्लेख न हो तो बात अधूरी लगती है।
ग्वालियर चंबल विधानसभा का क्षेत्र लहार आजादी के बाद से विधानसभा क्षेत्र भी है। पहले चुनाव यानी 1951-1952 के चुनाव में इस क्षेत्र के मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया था। 1952 और 1957 में इस क्षेत्र से दो उम्मीदवार चुनाव में खड़े हुए एक सामान्य और दूसरा आरक्षित सीट से। दोनों बार सामान्य और आरक्षित सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी रहे। आरंभ से यह क्षेत्र कांग्रेस के कब्जे में रहा। 1962 से दो उम्मीदवारों का चलन बंद हो गया और एक उम्मीदवार मैदान में हो गया 1962 में भी यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रही। 1990 से कांग्रेस के गोविंद सिंह ने इसे अपना गढ़ बना रखा है। इस बार भाजपा यहां कमल खिलाने की पुरजोर कोशिश में है।
1967 में जनसंघ जीती
1967 में लहार से जनसंघ विजय रही थी। इसके बाद 1985 से 2018 तक भाजपा विजय का स्वाद नहीं चख पाई। एक संयोग है कि गोविंद सिंह ने 1990 में जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और विजयी रहे बाद में वे कांग्रेस में आ गए और कांग्रेस के टिकट पर लगातार विजय होते रहे है। 2008 और 2013 में क्षेत्र के भाजपा नेता और ट्रांसपोर्टर अंबरीश शर्मा गुड्डू भैया को भाजपा ने टिकट नहीं दिया। उनका भाजपा से मोह भंग हो गया और वे बसपा में शामिल हो गए, वर्ष 2018 में बसपा के टिकट पर वे चुनाव लड़े और 31,367 मत प्राप्त किए जो डाले गए वैध मत का 20.26 था और वे तीसरे स्थान पर रहे। वहीं, भाजपा दूसरे स्थान पर रही।
कांग्रेस का गढ़ रहा है लहार
लहार शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहा है इसे भाजपा को भेदना एक चुनौती है। लहार 1957 एवं 1962 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहा, हालांकि, 1967 से सामान्य सीट में तब्दील हो गया। इस साल जून माह में अंबरीश शर्मा बसपा छोड़ पुनः भाजपा में शामिल हो गए। वहीं, गोविंदसिंह जद से कांग्रेस में आ गए और चुनाव लड़े और आज तक विजय हो रहे हैं। अब अंबरीश शर्मा गुड्डू भैया ने यही किया क्या शर्मा इतिहास दोहराएंगे? यह तो वक्त ही बताएगा, चुनाव में दोनों महारथी मैदान में हैं। देखना है मतदाता किसे चुनते हैं।
लहार सीट की रोचक जानकारी
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- 33 साल से गोविंद सिंह लहार सीट पर काबिज हैं।
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- पंडोखर सरकार ने अपने दिव्य दरबार में गोविंद सिंह को विजय का आशीर्वाद दिया है।
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- 1957 में सर्वाधिक मतदान 85. 1 प्रतिशत एक रिकॉर्ड है। न्यूनतम मतदान वर्ष 1962 में 42.5 रहा था।
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- वर्ष 2013 में लहार से 31 उम्मीदवार चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे थे। जो एक रिकॉर्ड था।