Jabalpur News : सबूत का बोझ अभियुक्त पर नहीं डाला जा सकता हाईकोर्ट

भोपाल जिला न्यायालय ने एक साल एक माह की बच्ची के साथ दुराचार करने के मामले में आरोपी पिता को आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया था। इसके खिलाफ दायर की गई अपील की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने पिता की सजा को निरस्त कर दिया है। युगलपीठ ने अपने अहम आदेश में कहा है कि पॉक्सो एक्ट की धारा 29 तथा 30 के तहत सबूत का बोझ आरोपी पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

भोपाल जिला न्यायालय द्वारा पॉक्सो एक्ट के तहत 20 साल के कारावास की सजा से दंडित किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। अभियोजन के अनुसार गांधी नगर भोपाल निवासी महिला ने रिपोर्ट दर्ज करवाई थी कि वह बाथरूम गई थी और वापस आकर देखा कि उसका पति बेटी के साथ अश्वील हरकत कर रहा था। वह दूसरे दिन बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास गई थी। डॉक्टर ने जांच में पुष्टि की। इसके बाद उन्होंने महिला को चाइल्ड हेल्पलाइन से मदद लेने की सलाह दी थी।

इसके बाद पीड़ित की मां ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी। मेडिकल जांच में लेबिया मेजोरा, पेरिवुल्वल क्षेत्र, पेरिनियल क्षेत्र और कमर क्षेत्र पर सतही घर्षण के निशान थे। मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार पीड़िता को लगी चोटें पेपर नैपकिन या डिपर के इस्तेमाल से नहीं हो सकतीं। अपीलकर्ता के सैंपल लेकर एफएसएल जांच के लिए भेजे गए थे, जो बच्ची के सैंपल से नहीं मिलते थे।

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि पॉक्सो की धारा 29 और 30 (2) से अभियोजन पक्ष को साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 और 102 के तहत सबूत के बोझ से पूरी तरह से राहत नहीं मिलती है। केवल अभियुक्त पर भार डालकर अभियोजन पक्ष का बोझ कम हो जाता है। अभियुक्त पर आरोपों के हटाने का दायित्व तभी होगा, जब अभियोजन पक्ष सबूत के मानक का पालन करके आरोप स्थापित करने में सफल हो जाता है।

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रकरण में अन्य साक्षियों ने अपने बयान में कहा है कि शिकायतकर्ता ने उन्हें घटना के संबंध में बताया था। शिकायतकर्ता पत्नी द्वारा दर्ज किए गए धारा 161 तथा 164 के बयान तथा न्यायालय में दर्ज कराए गए बयान में विरोधाभास है। अभियोजन पक्ष भी आरोप साबित करने में विफल रहा है। अपीलकर्ता संदेह के लाभ पाने का हकदार है और ट्रायल कोर्ट की सजा को रद्द किया जाता है।

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