पेपर कप भी स्वास्थ्य के लिए उतने ही हानिकारक हैं जितने प्लास्टिक कप कागज के कप में होता है प्लास्टिक फिल्म का प्रयोग
नर्मदापुरम / दीपकशर्मा : नवरात्र शुरू हो गए है। स्वच्छता और सफाई के लिहाज सेे चाय की दुकान पर जाते हैं वहां चायवाले से कहते है भैया ग्लास या कप में नही चाय पेपर कप में देना। तो सावधान हो जाइए। पेपर कप्स भी स्वास्थ्य के लिए उतने ही खतरनाक हैे जितने प्लास्टिक कप्स। इन दोनों के प्रयोग से पर्यावरण संरक्षण औेर सेहत की रक्षा में कोई खास फर्क नही पड़ता।क्योकि पेपर कप्स भी प्लास्टिक कप्स के जितने ही टॉक्सिक औैर नुकसानदेह होते है।
पेपर कप पर भी पलास्टिक की परत
पेपर न ही फैट रेसिस्टेंट होता है और न ही वॉटर रेसिस्टेंट। फूड पेकिजिंग के लिए जिस पेपर का इस्तमाल किया जाता है उसकी सर्फेस कोटिंग जरूरी होती है। कॉफी या चाय को यही प्लास्टिक हाथ पर गिरने से बचाता है। इसका मतलब यह हुआ कि पेपर कप पर भी प्लास्टिक की परत लगाई जाती है।यही प्लास्टिक पेपर को गर्म काफी या चाय से बचाता है।
पीएलए में फॉसिल फ्यूल नहीं
कागज के कप में जिस प्लास्टिक फिल्म का प्रयोग होता है। उसे पीएलए कहते है। यह एक प्रकार का बायोप्लास्टिक ही होता है। बायो प्लास्टिक रिन्यूएबल स्त्रोतो से बनाए जाते है जैसे कार्न ,गन्ना आदि। इन्हे बनाने में फॉसिल फ्यूल का प्रयोग नही किया जाता है। पीएलए को बायो डिग्रेडेबल कहा जाता है लेकिन फिर भी टॉक्सिक हो सकता है।
यह खतरनाक तत्व
स्याही में बायोएक्टिव सामग्रियां होती है। जो भोजन को दूषित कर सकती है। सीसा ओर भारी धातु जैसे रसायन भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते है। इसलिए खाद्य वस्तुओं को ढंकने या परोसने के लिए अखबार के उपयोग से भी बचना चाहिए। समोसा या पकौड़े जैसे तले हुए खाद्य पदार्थो से अतिरिक्त तेल सोखने के लिए भी अखबारों का उपयोग नही करना चाहिए।
कागज में भोजन लपेटना हानिकारक
एफएसएसएआई यानी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने खाद्य सामग्री विक्रताओंं और उपभोक्ताओं को चेतावनी जारी की है। जिसमें कहा गया है कि कागज खासकर अखबारों में इस्तमाल स्याही के रसायन स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी कर सकते है। इसलिए खाना पैक करने,परोसने औैर भंंडारण में इनका प्रयोग करने से बचे।
कुल्हड़ का प्रयोग अच्छा
विशेषज्ञ बताते है कि चाय काफी के लिए उपयोग किए जाने वाले पेपर कप्स से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। इसमें भी एक हद तक प्लास्टिक कोटिंग होती है। इसलिए यह नुकसान दायक है। एक तो यह बहुत अधिक मात्रा में होते है। जो कही भी फैंक दिए जाते है। इस कारण नालियां भी चोक हो जाती है। ये नदी तालाब तक भी पहुंच जाते है। इसकी जगह कुल्हड़ का उपयोग किया जाना चाहिए।