दलबदलू गिना तो देते हैं कई कारण, लेकिन छिपा ले जाते हैं खुद की वजहें और गले में पहन लेते हैं नई पार्टी का पट्टा

यहां लेखक की तरफ से एक स्पष्टीकरण है। यहां जो कहा जा रहा हैं, उसे पढ़ने वाले उसका मतलब ठीक ठीक उसी तरह लगा लें, जैसे लिखा गया है। बीजेपी का पट्टा लटका लिया, यह इस संदर्भ में है कि यह संसदीय राजनीति में एक नई संस्कृति का चिह्न है। किसी एक नेता या व्यक्ति को दूसरी चुनावबाज पार्टी में जाने के लिए कुछ ज्यादा नहीं करना होता है। बस गले में एक नई पार्टी का नया पट्टा लटकाना होता है। वह पट्टा उसकी नई गली का पता होता है।

दूसरी बात यह भी स्पष्ट रहे कि यह किसी एक विशेष पार्टी से दूसरी किसी विशेष पार्टी की तरफ जाने पर भी टिप्पणी नहीं है। यहां कांग्रेस से भाजपा में जाने की चर्चा जरुर की गई है। लेकिन कांग्रेस में भी भाजपा से कई कुर्सीधारी नेता आए हैं।

अन्य पार्टियां भी हैं। जैसे समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता रहे गौरव भाटिया जब बीजेपी में गए थे तो गौरव बल्लभ ने शायद यही पूछा होगा कि उन्हें भी पार्टी बदलनी है तो क्या कहें, ऐसे में संभवता जवाब रहा होगा कि जैसाकि उन्होंने कहा, वही कह दीजिएगा। तीसरी बात यह भी स्पष्ट है कि पार्टियों के प्रवक्ताओं के पार्टी बदलने तक भी यह सीमित हैं। प्रवक्त्ता टेलीविजन स्क्रीन पर दिखते हैं तो उन्हें लगता है स्क्रीन ही समाज है। वे स्क्रीन से  हटे और विचारधारा दुर्घटनाग्रस्त हो गई। आने-जाने वाले लोगों का इतिहास देखिए। उनका अता-पता नहीं मिलता है।   

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