सादपुर गांव में विराजमान भगवान गणेश की पाषाण प्रतिमा
दमोह जिले के बटियागढ़ ब्लॉक के सादपुर गांव में विराजमान भगवान गणेश की पाषाण प्रतिमा की महिमा अद्भुत है। यह प्रतिमा स्वप्न देकर जमीन के नीचे से निकली थी और किवंदती यह भी है कि प्रतिमा स्थापना होते ही अगले दिन गायब हो थी और जहां से लाया गया था वहां मिली थी। प्रतिमा की स्थापना की खुशी में यहां 50 वर्षों से सात दिवसीय मेले का आयोजन भी ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है। गजानन की पांच फीट ऊंची यह प्रतिमा गांव के लोग बरी कनौरा गांव से लाए थे। ग्रामीणों के अनुसार गांव के एक व्यक्ति को स्वप्न आया था कि कनौरा गांव में जमीन के अंदर मूर्ति धंसी है। उस व्यक्ति ने ग्रामीणों को स्वप्न बताया और गांव वाले प्रतिमा सादपुर ले आए थे। सादपुर के मंदिर में विराजे भगवान की गणेश प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है। इसके अलावा भगवान एक हाथ में फरसा लिए हुए हैं। सबसे खास बात यह है कि पूरी प्रतिमा एक ही पत्थर पर उकेरी गई है। भगवान गणेश के मान स्वरूप सादपुर में मेला व साप्ताहिक हाट बाजार शुरू हुआ था।
50 वर्ष से गांव में लगता है मेला
बरी कनौरा गांव से लाई गई भगवान गणेश की प्रतिमा सादपुर गांव के मंदिर में विराजमान होने की खुशी में सादपुर सहित आसपास के गांव के लोगों द्वारा मंदिर परिसर के पास सात दिवसीय मेले का आयोजन किया गया। मूर्ति स्थापना के 50 से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी गांव में मेला भरने की परंपरा जारी है। हालांकि यह मेला मूर्ति स्थापना दिवस गणेश चतुर्थी के समय लगता है। मेले में सादपुर सहित दर्जनों गांव के लोग शामिल होते हैं जो भगवान गणेश के दर्शन कर मेले का आनंद लेते हैं।
रात में अपने आप वापस हो गई थी मूर्ति
ग्रामीण रतिराम विश्वकर्मा ने बताया कि उनके घर के बुजुर्ग बताया करते थे कि गांव के किसी बुजुर्ग व्यक्ति को स्वप्न आने के बाद गांव के लोग मूर्ति को गांव ले आए थे और चबूतरे पर मूर्ति की स्थापना कर दी थी। दूसरे दिन मूर्ति उक्त स्थल से गायब थी। ग्रामीण परेशान थे कि रात भर में मूर्ति कहां चली गई। बाद में पता चला की मूर्ति जिस स्थान से लाई गई थी, वहीं पहुंच गई। बुजुर्गो की सलाह पर मिहीलाल पाठक द्वारा ग्रामीणों के साथ कनौरा गांव जाकर भगवान से चलने का निवेदन किया और मूर्ति बेलगाड़ी पर लाई गई और स्थापना कर विधि विधान के साथ स्थापित की गई। तब से मूर्ति यथावत है। लोगों की आस्था के केंद्र इस गणेश मंदिर में दस दिनों तक दूर-दूर से लोग भगवान के दर्शन करने आते हैं।