जनसंघ और बीजेपी की नीतियों की तुलना

बीजेपी संविधान के मुताबिक एकात्म मानववाद ही पार्टी का आधारभूत दर्शन है। बीजेपी यह कहकर भाषाई राज्यों के विचार का विरोध करती है (3 और 24 अप्रैल, 1965 को दिए गए भाषण) कि, ‘संविधान का पहला पैरा “इंडिया दैट इज़ भारत राज्यों का एक संघ होगा”, यानी बिहार माता, बंग माता, पंजाब माता, कन्नड़ माता, तमिल माता, इन सभी को मिलाकर भारतमाता बनाई गई है। यह हास्यास्पद बात है।

हमने राज्यों की भारतमाता की भुजाओं के रूप में कल्पना की है, न कि व्यक्तिगत माताओं के रूप में। इसलिए, हमारा संविधान संघीय के बजाय एकात्मक होना चाहिए।’ जरा याद कीजिए कि आखिरी बार हमें बीजेपी कब इस बारे में जोर देते हुए दिखाई या सुनाई दी है?

जनसंघ अपने बहुसंख्यकवाद को उतनी स्पष्टता और पूरे ज़ोर-शोर से व्यक्त करने में असमर्थ रहा, जितना बाद में बीजेपी ने करती रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए एक विशिष्ट कार्यक्रम का अभाव था, मसलन बाबरी मस्जिद के खिलाफ अभियान। भले ही जनसंघ के गठन से कुछ महीने पहले ही मूर्तियों को मस्जिद में रख दिया गया था, लेकिन 1951 से 1980 तक जनसंघ के किसी भी घोषणापत्र में अयोध्या या वहां राम मंदिर होने का कोई संदर्भ नहीं दिया गया था।

एक बार सत्ता हाथ में आ गई तो वे सभी बातें जिनके दावे जनसंघ ने किए थे और जिस पर वह दशकों से कायम है, और उसमें उसके घोषणापत्र और उसके ‘बुनियादी दर्शन’ भी शामिल हैं, उन्हें दरकिनार कर दिया गया है।

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