अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर
4 महादेव में प्रथम स्थान रखने वाले श्री अगस्त्येश्वर महादेव का मंदिर हरसिद्धि माता मंदिर के पीछे संतोषी माता मंदिर के प्रांगण में स्थित है, जो की अति प्राचीन है। मंदिर के पुजारी पंडित मनोज पुरी ने जानकारी देते हुए बताया कि यह शिवलिंग स्वयंभू है, जो कि काले पाषाण का होने के साथ ही पिरामिड नुमा है।
इस मंदिर में भगवान गणेश, पार्वती व कार्तिकेय की प्रतिमा के साथ ही नृत्य करते हुए गणेश, माता सती की चरण पादुका, सती स्तंभ, हनुमान जी, भैरव, काली की प्रतिमा भी अत्यंत प्राचीन है। पूर्व में मुगल शासकों द्वारा की गई तोड़फोड़ के दौरान इस मंदिर को भी क्षतिग्रस्त किया गया था। यही कारण है कि मंदिर में एक शिलालेख भी है, जिस पर उर्दू में कुछ लिखा हुआ दिखाई देता है।
मंदिर के पुजारी पंडित मनोज पुरी बताते हैं कि श्री अगस्त्येश्वर महादेव ऐसे महादेव हैं, जिनके पूजन अर्चन के साथ 84 महादेव की यात्रा की शुरुआत होती है। स्कंद पुराण में उल्लेखित श्री अगस्त्येश्वर महादेव की कथा बताती है कि प्राचीन समय में जब असुरों का अधिपत्य लगातार बढ़ने लगा तो देवता इधर-उधर भटक रहे थे। जब उन्होंने परम तेजस्वी अगस्त्य ऋषि को तपस्या करते देखा तो यह जानने की कोशिश की कि आखिर दैत्यों से उनकी पराजय का कारण क्या है।
यह प्रश्न पूछे जाने से अगस्त्य ऋषि अत्यंत नाराज हो गए और उनके भीतर से निकली क्रोध की ज्वाला के कारण यह देवता जलकर भस्म हो गए। इस घटना के बाद अगस्त्य ऋषि ब्रह्म हत्या के पाप के लिए काफी व्याकुल हुए, क्योंकि इस पाप से उनकी तपस्या भंग हो गई थी। वहीं, उन पर ब्रह्म हत्या का दोष भी लगा। ब्रह्म हत्या के इस दोष से बचने के लिए अगस्त्य ऋषि ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, जहां उन्होंने प्रायश्चित करते हुए इस दोष के निवारण का उपाय पूछा।
ब्रह्मा जी ने अगस्त्य ऋषि को महाकाल वन मे विराजित शिवलिंग का पूजन-अर्चन करने को कहा, जिनकी बात मानकर अगस्त्य ऋषि महाकाल वन पहुंचे। जहां उन्होंने इसी शिवलिंग का पूजन-अर्चन कर कठोर तपस्या की, जिससे खुश होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने अगस्त्य ऋषि को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के साथ ही यह वरदान भी दिया कि जिस शिवलिंग का पूजन-अर्चन तुमने सच्चे मन से किया है। अब यह शिवलिंग तुम्हारे ही नाम से श्री अगस्त्येश्वर महादेव के नाम से विख्यात होगा।
पुजारी पंडित मनोज पुरी ने बताया कि चमत्कारी शिवलिंग का पूजन अर्चन अष्टमी, चतुर्दशी और शुक्रवार के दिन करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और समस्त संकटों से मुक्ति मिल जाती है।