जेल से कैदियाें को आजाद कर GPS की मदद से उनपर नजर रखने की तैयारी, जानें क्या है प्लान

ओडिशा की जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए एक बड़ी योजना पर काम किया जा रहा है. गैर-जघन्य आरोपों का सामना कर रहे विचाराधीन कैदियों को अब जेल से आजाद कर दिया जाएगा. उनकी ट्रैकिंग के लिए जीपीएस-सक्षम ट्रैकिंग उपकरणों का इस्तेमाल किया जाएगा. कैदियों पर जीपीएस लगाकर उनकी निगरानी करने वाला ओडिशा पहला राज्य बन जाएगा. ऐसा करने का उद्देश्य जेल की भीड़ को कम करना और कैदियों पर होने वाले सरकारी खर्च में कटौती करना है. इस तरह की डिवाइस का प्रयोग अमेरिका में हो रहा है.

एड़ी में लगेगी जीपीएस वाली ट्रैकिंग डिवाइस

ओडिशा जेल निदेशालय ने जेल में भीड़ कम करने के लिए राज्य सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि उसे विचाराधीन कैदियों की एड़ी में जीपीएस युक्त ट्रैकिंग उपकरण लगाने की मंजूरी दी जाए और कैदियों को जेल की चहारदीवारी से आजाद कर दिया जाए. जेल महानिदेशक मनोज छाबड़ा ने कहा कि यदि प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है और इस पर अमल होता है, तो ओडिशा गैर-जघन्य अपराधों में आरोपी विचाराधीन कैदियों को रिहा करने वाला देश में पहला राज्य होगा.

80 फीसदी कैदी विचाराधीन

छाबड़ा ने कहा कि ओडिशा समेत देशभर की जेलों में कैदियों की भीड़ सबसे बड़ी समस्या है और करीब 80 फीसदी कैदी विचाराधीन कैदी हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कई कैदी उन मामलों में जेल में बंद हैं, जिनमें सात साल से कम की सजा का प्रावधान है.

ताकि जेल में भीड़ कम हो सके

ओडिशा सरकार को भेजे गये विभाग के प्रस्ताव के मुताबिक, जीपीएस युक्त ट्रैकिंग उपकरण उन कैदियों की एड़ी में लगाये जाएंगे जो उन गैर- जघन्य मामलों में आरोपों का सामना कर रहे हैं जिनमें अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है ताकि जेल में भीड़ कम हो सके.

यह स्वैच्छिक होगा

छाबड़ा ने कहा कि यह स्वैच्छिक होगा और विचाराधीन कैदियों के पास विकल्प होगा कि वे उपकरण को पहनें या फिर जेल में रहें. उन्होंने कहा कि उपकरण की मदद से पुलिस और जेल प्रशासन विचाराधीन कैदियों पर नजर रखने में सक्षम होगा. उन्होंने कहा कि यदि कोई विचाराधीन कैदी ट्रैकर को क्षतिग्रस्त करने का प्रयास करता है, तो स्थानीय थाने को एक अलर्ट मिलेगा और त्वरित कार्रवाई की जाएगी.

मानवाधिकार का उल्लंघन तो नहीं होगा?

क्या इस कदम से मानवाधिकार का उल्लंघन होगा, इस बारे में पूछे जाने पर छाबड़ा ने कहा, मुझे लगता है कि हमारे प्रयास का मानवाधिकार कार्यकर्ता समर्थन करेंगे क्योंकि विचाराधीन कैदी जेल में रहने के बजाय आजाद रहेंगे. उन्हें उपकरण को एड़ी के आसपास वाली जगह पहनना होगा, जिसे पतलून से ढंका जा सकता है.

खर्च की बात

अभी इस उपकरण की कीमत के बारे में जानकारी नहीं है, क्योंकि इनका निर्माण देश में नहीं होता. लेकिन छाबड़ा ने कहा कि इस उपकरण की कीमत एक विचाराधीन कैदी पर आने वाले सरकार के खर्च से बहुत कम होगी. उन्होंने कहा कि जेल में एक विचाराधीन कैदी पर हर साल करीब एक लाख रुपये का खर्च आता है, लेकिन ट्रैकिंग उपकरण की कीमत एक लाख रुपये से कम होनी चाहिए. भाषा इनपुट के साथ

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