क्या आप अब भी इस ‘नौजवान’ को कोई बधाई या शाबाशी नहीं देना चाहेंगे ?

(FILES) In this file photo taken on November 1, 2022, India’s Congress party leader Rahul Gandhi (C) takes part in the ‘Bharat Jodo Yatra’ march on the outskirts of Hyderabad. – Five months spent traversing his country on foot helped the scion of India’s most famous dynasty shed his playboy image — but the road to reviving his dismal fortunes will be a tougher journey. (Photo by Noah SEELAM / AFP)

एक लंबी चलने वाली लड़ाई के पहले दौर को अकेले आदमी ने आज जीतकर दिखा दिया है ! क्या आप अब भी इस तिरपन साल के ‘नौजवान’ को कोई बधाई या शाबाशी नहीं देना चाहेंगे ? उसकी हिम्मत की दाद नहीं देंगे? उसकी आँखों में आँखें डालकर मुस्कुराएँगे नहीं ? उससे उसके घुटने के बारे में कुछ भी नहीं पूछेंगे कि अब दर्द और कितना बचा है ? वही घुटना जिसमें उसकी ऐतिहासिक यात्रा के वक्त चलते-चलते पीड़ा का ज्वालामुखी फूट पड़ता था ! जिसके कदम कड़कती ठंड, गर्मी और बरसात भी नहीं रोक पाई थी ! जिसने इस देश की सड़क को ही अपना घर और आकाश को छत बना लिया था !

सोचो क्या हो जाता अगर वह ‘नौजवान’ चलना बंद कर देता ? क्या करते वे हज़ारों-लाखों लोग जो सड़कों के दोनों ओर उसे देखने और मिलने की प्रतीक्षा में घंटों खड़े रहते थे, उसके साथ अपने कदम मिलाने और दौड़ लगाने को बेचौन रहते थे ? वह बेसहारा औरत तब क्या करती जो घर से किसी तरह भागकर अपनी शिकायत इस ‘नौजवान’ को सुनाने पहुँची थी ? अपने दुख-दर्द की कहानी वह किसके साथ बाँटती अगर यह नौजवान उसे बीच सड़क पर नहीं मिलता ? उस औरत को किसी ने तो बताया होगा कि एक ऐसा शख़्स उसके कहीं आसपास से गुज़रकर एक लंबी यात्रा पर जा रहा है जिसे वह अपनी पीड़ा सुना सकती है।

सारी हलचलें एक लंबे-गहरे सन्नाटे में बदल जातीं अगर यह नौजवान यात्रा की चुनौतियों से घबराकर बीच रास्ते से ही अगर अपने घर को लौट जाता । लोग एक-दूसरे से कुछ भी पूछना और अपनी गुम हो चुकी आज़ादी की तलाश करना बंद कर देते । पर ऐसा नहीं हुआ ! सिर्फ़ एक आदमी की हिम्मत ने इतनी बड़ी हुकूमत की ताक़त को हिलाकर रख दिया। जिन सपनों के हक़ीक़त में बदलने को लेकर शंकाएँ ज़ाहिर की जा रहीं थीं नौजवान की ज़िद ने उन्हें ज़मीन पर उतार कर लोगों के हाथों में थमा दिया ।

‘नौजवान’ अपनी ज़िद पर क़ायम था कि उसे उसके सवालों के जवाब हर क़ीमत पर चाहिए ! चाहे उसे निष्कासित कर दिया जाय या फिर जेल में डाल दिया जाए वह सवाल पूछना बंद नहीं करेगा। उसने दावा किया कि उसकी लड़ाई गांधी की तरह ही सत्य के लिए है। उस गांधी के सत्य की तरह जिसका शरीर 30 जनवरी 1948 के दिन गोलियों से छलनी कर दिया गया था जब वह अपने राम की प्रार्थना के लिए जा रहा था । आज़ादी के इतिहास को बदलने वालों की ओर से हर ‘मुमकिन’ कोशिश की जा रही थी कि इस नौजवान को कोई नया इतिहास नहीं बनाने दिया जाए।

नौजवान जानता था कि देश के नागरिक इस समय लोकतंत्र के ‘ईको प्वॉइंट्स’ पर चुपचाप खड़े हैं। वे डरे हुए हैं कि दूर सामने स्थित सत्ता की निष्प्राण चट्टानों को अपने ‘मन की बात’ सुनाने के लिए उनके पास कोेई हिम्मत ही नहीं ? अधिकांश नागरिक मूक दर्शकों की तरह सब कुछ देख और सुन रहे हैं। न तो वे किसी साहसी व्यक्ति के द्वारा बोले जाने वाले अथवा चट्टानों से टकराकर लौटने वाले शब्द के प्रति ही अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। वे मानकर चल रहे हैं कि कोई भी बोला हुआ शब्द सत्ता की गूँगी और निष्ठुर चट्टानों तक कभी पहुँचेगा ही नहीं। पहुँच भी गया तो उनसे टकराने के बाद लहू-लुहान होकर ही वापस लौटेगा।

‘द अल् केमिस्ट’ नामक अपने चर्चित उपन्यास में ब्राज़ील के प्रसिद्ध उपन्यासकार पाउलो कोएल्हो का कथन उल्लेखित है कि अगर आप कोई अच्छा काम करना चाहते हैं तो दुनिया की सारी शक्तियाँ आपकी मदद में जुट जाती हैं। हुकूमत की ताक़त ने जब उसे विफल करने की कोशिश की दुनिया भर की ताक़तें उसे कामयाब बनाने में जुट गईं। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, हमले तेज़ होते गए पर वह रुका नहीं। क्या आप अब भी इस ‘नौजवान’ को कोई बधाई या शाबाशी नहीं देना चाहेंगे ?

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