वाह रे विभाग! शिकायत करने वाले के खिलाफ ही जारी हुआ आदेश, शिकायतकर्ता शिक्षक का किया स्थानांतरण

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नर्मदापुरम। सरकारी तंत्र में होने वाले फैसले कई बार आम जनता के लिए हैरान कर देने वाले होते हैं। ऐसा ही एक मामला नर्मदापुरम जिले के एक स्कूल का सामने आया है, जहाँ विभाग ने एक समस्या का ‘समाधान’ ऐसा किया कि शिकायतकर्ता को ही दंडित करने जैसा लग रहा है। विवाद को खत्म करने के नाम पर विभाग ने शिकायत दर्ज कराने वाले शिक्षक (Shikshak) को ही अस्थाई तौर पर दूसरे स्कूल में तबादला कर दिया है। यह फैसला कई सवाल खड़े कर रहा है और विभागीय कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

घटना की शुरुआत 4 अगस्त, 2025 को हुई, जब जनशिक्षक नारायण मीना निरीक्षण के लिए झालोंन स्थित एकीकृत शाला पहुंचे। वहाँ उन्होंने पाया कि हेडमास्टर सुनील शर्मा और दो महिला शिक्षिकाएँ 28 जुलाई 2025 से लेकर 4 अगस्त 2025 तक लगातार विद्यालय में उपस्थित नहीं थीं।जनशिक्षक ने जब फोन पर हेडमास्टर से इस बारे में पूछताछ की, तो मामला और उलझ गया।

शिक्षक (Shikshak) राधेलाल मेहर के अनुसार, हेडमास्टर सुनील शर्मा ने न केवल जनशिक्षक के साथ, बल्कि उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया और अभद्रता से पेश आए। इस घटना के बाद राधेलाल मेहर ने इसकी लिखित शिकायत थाना प्रभारी और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से की।

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शिक्षा विभाग का आदेश

विवादास्पद आदेश: तारीखों का पेंच और शिकायतकर्ता पर ही कार्रवाई

मामले की जांच के बाद जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय 23 सितंबर, 2025 को एक आदेश (पत्र क्रमांक 7007/सर्तकता/2025) जारी करता है। हालाँकि, इस आदेश में भी एक अनियमितता नजर आती है। पत्र 23 सितंबर 2025 को जारी किया गया, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी के हस्ताक्षर 25 सितंबर 2025 को हैं। यह एक साधारण लापरवाही हो सकती है, लेकिन यह पूरे प्रकरण में बरती जा रही जल्दबाजी और गैर-गंभीरता को दर्शाता है।

इस आदेश का सबसे चौंकाने वाला पहलू वह है, जिसमें शिकायत करने वाले शिक्षक (shikshak) राधेलाल मेहर को ही प्रभावी तौर पर दंडित किया गया प्रतीत होता है। आदेश में कहा गया है, “महिलाओं के बयान को देखते हुए आपकी पदस्थापना अन्यत्र शाला में करना उचित होगा, जिससे कि शाला का वातावरण शांतिपूर्वक रहे एवं पढ़ाई के लिए बच्चों का माहौल स्वस्थ और अच्छा मिले। इस हेतु आपकी अस्थाई पदस्थापना शा.प्रा. शाला सांगाखेड़ाखुर्द में की जाती है।”

यह पंक्तियाँ हैरान कर देने वाली हैं। shikshak राधेलाल मेहर वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने हेडमास्टर सुनील शर्मा के खिलाफ अनियमितताओं और दुर्व्यवहार की शिकायत की थी। घटना के अगले ही दिन उन्होंने विभाग को पत्र लिखकर मामले की जानकारी दी थी। लेकिन जांच के परिणामस्वरूप, आरोपी हेडमास्टर पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि शिकायतकर्ता को ही स्कूल से हटाकर दूसरी जगह भेज दिया गया।

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मामले में अब भी कई सवाल अनुत्तरित

यह फैसला कई गंभीर सवाल खड़े करता है, जिनके जवाब विभाग की जिम्मेदारी है कि वह जनता को दे:

1. जांच के दौरान पीड़ित शिक्षक (shikshak) को ही क्यों दूर किया गया?
सामान्य प्रशासनिक नियम यह कहते हैं कि जांच के दौरान आरोपी को ही तटस्थ रखने का प्रयास किया जाता है ताकि जांच प्रभावित न हो। लेकिन इस मामले में उलटा हुआ। शिकायतकर्ता को ही ‘स्कूल का माहौल खराब होने’ के आधार पर बाहर भेज दिया गया। क्या इसका मतलब यह है कि सच बोलने वाले को ही दंडित किया जाएगा?

2. आरोपी हेडमास्टर के बारे में जानकारी के बावजूद लापरवाही क्यों?
सूत्रों के अनुसार, हेडमास्टर सुनील शर्मा का अक्सर स्कूल से गायब रहना कोई नई बात नहीं है। फिर भी जांच में इस पहलू पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया गया? क्या विभाग पहले से मौजूद शिकायतों को नजरअंदाज कर रहा है?

3. किन ‘महिलाओं के बयान’ के आधार पर की गई कार्रवाई?
आदेश में ‘महिलाओं के बयान’ का हवाला देकर (shikshak ) राधेलाल मेहर के खिलाफ कार्रवाई की गई है। दिलचस्प बात यह है कि इसी स्कूल की दो महिला शिक्षिकाएँ भी 28 जुलाई 25 से 4 अगस्त 25 तक बिना अनुमति के गायब रहीं, जिनके खिलाफ जनशिक्षक ने निरीक्षण रिपोर्ट में उल्लेख किया था। क्या ये वही महिला शिक्षिकाएँ हैं? अगर हाँ, तो क्या अनुपस्थित रहने वाले शिक्षकों के बयान को एक मेहनती और शिकायतकर्ता शिक्षक (shikshak) के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है? यह बात समझ से परे है।

4. प्रीति शर्मा के बारे में शिकायत पर कार्रवाई क्यों नहीं?
राधेलाल मेहर (shikshak) ने अपनी शिकायत में एक गंभीर आरोप यह भी लगाया था कि हेडमास्टर सुनील शर्मा अपनी पत्नी और सह-शिक्षिका प्रीति शर्मा के हस्ताक्षर खुद ही कर देते हैं और वह अक्सर स्कूल नहीं आती हैं। यह एक गंभीर अनियमितता है, जिसकी जांच होनी चाहिए थी। लेकिन विभाग ने इस आरोप की अनदेखी कर दी। क्या इसकी वजह यह है कि आरोपी खुद एक प्रधानपाठक हैं?

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शिक्षक (Shikshak) राधेलाल मेहर द्वारा की गई शिकायत

मुझे सच बोलने की सजा दी

शिक्षक (shikshak) राधेलाल मेहर ने देनवापोस्ट से बातचीत में कहा—मुझे सच बोलने की सजा दी गई है। मैं जीवन भर अपने विद्यार्थियों को यही सिखाता आया हूँ कि सच का साथ देना चाहिए, सच बोलना चाहिए। लेकिन आज जब मैंने सच कहा, तो मुझे ही दंडित कर दिया गया। अब मेरे विद्यार्थी मुझसे पूछेंगे कि सच बोलने का क्या परिणाम होता है—तो मैं क्या कहूँ? क्या यह बताऊँ कि सच बोलना कष्ट और सजा देता है?”

न्याय या अन्याय?

यह मामला सिर्फ एक शिक्षक (shikshak) के स्थानांतरण का नहीं, बल्कि पूरे शिकायत तंत्र और नैतिकता का मामला है। अगर सच बोलने वालों को ही इस तरह का ‘इनाम’ मिलेगा, तो कोई भी व्यक्ति भविष्य में अनियमितताओं के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करेगा। विभाग का यह फैसला एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जहाँ आरोपी सत्ता में बना रहता है और पीड़ित को ही सजा मिलती है।

जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का यह कर्तव्य है कि वे इस पूरे मामले की निष्पक्ष पुनः समीक्षा करें। हेडमास्टर सुनील शर्मा के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की स्वतंत्र जांच कराएँ और शिक्षक (shikshak) राधेलाल मेहर के विरुद्ध लिए गए फैसले पर पुनर्विचार करें। तभी शिक्षा का वातावरण वास्तव में ‘स्वस्थ और अच्छा’ बन पाएगा। वरना, यह मामला विभागीय कार्यप्रणाली के एक काले अध्याय के रूप में दर्ज होगा।0 को ही अस्थाई तौर पर दूसरे स्कूल में तबादला कर दिया है। यह फैसला कई सवाल खड़े कर रहा है और विभागीय कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा रहा है।

Disclaimer : इस खबर को तथ्यात्मक और संतुलित बनाने का हर संभव प्रयास किया गया है। हालाँकि, इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी का पक्ष जानने के लिए देनवापोस्ट की टीम ने कई बार उनसे संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे बातचीत नहीं हो पाई। यदि विभाग की ओर से इस संबंध में कोई आधिकारिक जवाब या बयान प्राप्त होता है, तो इस रिपोर्ट को तुरंत अपडेट कर दिया जाएगा।

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