निराश्रित गोवंश का प्रबंधन प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर बड़ी समस्या है। करोड़ रुपए खर्च कर शासन ने सुविधायुक्त गोशाला भवन बनवा दिए, लेकिन गोवंश का प्रबंधन नहीं हो पा रहा है। प्रशासनिक स्तर पर 46 गोशालाओं के संचालन के दावों के बीच विभाग ने 34 गोशालाओं का भौतिक सत्यापन किया है।
संचालित गोशालाओं में प्रशासन चार हजार 754 गोवंश का दावा कर रहा है। जिसके लिए हर माह 57 लाख रुपए से अधिक का अनुदान बांटा जा रहा है। जबकि छह गोशालाओं का तो सत्यापन ही नहीं किया जा सका। उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं द्वारा गोशलाओं के संचालन की जो प्रमाणित जानकारी दी गई है, उनमें से कुछ गोशालाएं तो बंद हैं। इनके अलावा स्योंढ़ा, कनावर, बझाई, अकोड़ा शामिल हैं। रौन के निबसाई में गोशाला के नाम पर ढांचा है। उप संचालक पशु चिकितसा सेवाएं ने सूचना के अधिकार में मांगी गई जानकारी में ग्राम पंचायत बिजपुरी में 161 गोवंश रखने और 142 का सत्यापन करने की जानकारी दी है। किसान यूनियन के अध्यक्ष अंबरीश कुमार चतुर्वेदी एवं आप के आरटीआई विंग अध्यक्ष जगदीश सिंह भदौरिया का कहना है कि प्रशासन जब तक गोविहार के लिए शासकीय भूमि को अतिक्रमण सेमुक्त नहीं कराएगा, गोवंश का प्रबंधन व्यावहारिक रूप से मुश्किल है। अकोड़ा की गोशाला के बछड़ा कक्ष में तो नगर परिषद के ट्रीगार्ड भरे हैं।
प्रशासन जो दावा कर रहा है, वह गोवंश गोशालाओं में नहीं है। हम चार-पांच पंचायतों पर एक गोशाला के लिए दानदाता सदस्यों की समिति बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस दौरान गोशालाओं को देखा तो कई जगह गोवंश है ही नहीं।
जगदीश सिंह भदौरिया, अध्यक्ष, आप, आरटीई विंग
गोशालाओं के हिसाब से दर्ज और सत्यापित गोवंश की रिपोर्ट हमने दी है। दिन में तो गोवंश भ्रमण पर निकल जाता है।
डॉ. आरएस भदौरिया, उप संचालक, पशु चिकित्सा सेवाएं