नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने मंगलवार को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में निर्णायक जीत दर्ज की। उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार एवं सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को हराया। राधाकृष्णन को 452 प्रथम वरीयता वोट मिले, जबकि रेड्डी को 300 वोट हासिल हुए। इस जीत के साथ राधाकृष्णन मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की जगह लेंगे।
शुरुआती जीवन और वैचारिक आधार
68 वर्षीय राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुपुर में हुआ। किशोरावस्था से ही उनकी रुचि संगठनात्मक गतिविधियों में रही। महज 16 वर्ष की उम्र में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और धीरे-धीरे भाजपा में सक्रिय होते गए। यही वैचारिक जड़ें उनके आगे के राजनीतिक सफर की नींव बनीं।
राजनीतिक उत्थान
राधाकृष्णन पहली बार 1990 के दशक के उत्तरार्ध में सुर्खियों में आए। उन्होंने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में कोयंबटूर सीट रिकॉर्ड अंतर से जीती, जो भाजपा के लिए तमिलनाडु जैसे चुनौतीपूर्ण राज्य में एक बड़ी सफलता थी।
2004 से 2007 तक वे तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष रहे और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी बने। उनकी संगठनात्मक क्षमता और स्पष्ट छवि ने उन्हें राज्य की राजनीति में अलग पहचान दिलाई।
संवैधानिक पद और शासन अनुभव
फरवरी 2023 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। एक साल बाद फरवरी 2024 में वे महाराष्ट्र के राज्यपाल बने। इन पदों पर रहते हुए उन्होंने प्रशासनिक अनुभव और व्यवहारिक दृष्टिकोण का परिचय दिया। सहयोगी उन्हें वैचारिक रूप से संघ से जुड़ा, लेकिन शासन में व्यावहारिक मानते हैं।
विवाद और सार्वजनिक बयान
राधाकृष्णन विवादों से पूरी तरह दूर नहीं रहे। 2023 में, जब तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने “सनातन धर्म के विनाश” का आह्वान किया था, तब झारखंड के राज्यपाल के रूप में राधाकृष्णन ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने चेतावनी दी कि जो लोग हिंदू परंपराओं को नष्ट करना चाहते हैं, वे “अपने ही कृत्य से नष्ट हो जाएंगे।”
उन्होंने उदयनिधि को “गहराई से परे एक बच्चा” कहकर खारिज कर दिया। इस बयान ने समर्थकों और आलोचकों दोनों का ध्यान आकर्षित किया।
रणनीतिक महत्व
उनका राज्यपाल कार्यकाल भाजपा की तमिलनाडु इकाई, विशेषकर प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई के कोयंबटूर और कोंगु बेल्ट में संगठन मजबूत करने के प्रयासों से मेल खाता है। यह भाजपा की उस रणनीति को दर्शाता है, जिसके तहत पार्टी दक्षिण भारत में अपनी जड़ें गहरी करने की कोशिश कर रही है।
सी.पी. राधाकृष्णन की जीत सिर्फ व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि भाजपा और एनडीए के लिए एक रणनीतिक संदेश भी है। वे एक ऐसे नेता हैं जो संघ की वैचारिक पृष्ठभूमि और प्रशासनिक अनुभव दोनों को साथ लेकर चलते हैं। अपेक्षाकृत साफ-सुथरी छवि, सीधे-सपाट बोलने का अंदाज और दक्षिण भारत से आने वाली उनकी पृष्ठभूमि उन्हें मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में अलग पहचान दिलाती है।