स्टेडियम में मैं जहां बैठा था, यानी मंच के बिल्कुल पास, वहीं तमाम कैमरे लगे थे और भारत से आए पत्रकार अपने-अपने चैनलों को लाइव दे रहे थे। एक चैनल की रिपोर्टर जोर-जोर से बोल रही थी कि हॉल खचाखच भरा हुआ है और माहौल इलेक्ट्रिफाइंग है। माहौल इलेक्ट्रिफाइंग तो था। कभी इधर से ‘मोदी-मोदी‘ के नारे लग रहे थे तो कभी उधर से। भारत माता की जय कम सुनाई दे रही थी। जिस गलियारे से नरेंद्र मोदी को मंच तक पहुंचना था, उसके आस-पास खड़े लोगों में बहुत से वही लोग थे जो ऑस्ट्रेलिया के व्हाट्सऐप ग्रुप्स में हेट-मेसेज भेजते हैं।
एक तरफ बोहरा समुदाय के लोगों का एक छोटा सा झुंड था, जो अपनी पारंपरिक पोशाक में आए थे। हालांकि, अंदर आने से पहले जब मैंने उनसे इंटरव्यू करना चाहा तो कोई भी बात करने को राजी नहीं था। मेरी दिलचस्पी इस बात में भी थी कि हॉल में कितने सिख मौजूद हैं, क्योंकि कार्यक्रम से दो-तीन दिन पहले आईएडीएफ की तरफ से ‘स्वागत समिति’ के नाम सार्वजनिक किये गये थे, जिनमें कई सिख थे। पर हॉल में गिने-चुने ही सिख नजर आ रहे थे।
हां, स्टेडियम के बाहर सिखों का एक समूह खालिस्तान के समर्थन में प्रदर्शन कर रहा था और मोदी विरोधी नारे लगा रहा था। जब वे लोग नारे लगा रहे थे तब स्टेडियम के भीतर से मोदी-समर्थकों का एक गुट गेट के पास आया और उनके खिलाफ नारे लगाने लगा। लेकिन कुछ ही देर में वे अंदर चले गये। खालिस्तान समर्थकों के प्रदर्शन को लगभग सभी बड़े मीडिया चैनलों ने कवर किया।