राष्ट्रीय पर्व का असली रंग: तिरंगा यात्रा और त्योहार की गरिमा

तिरंगा यात्रा तिरंगे के सम्मान और राष्ट्रभक्ति के जज़्बे को जन-जन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम है। यह यात्रा लोगों में राष्ट्रीय एकता का संदेश देती है और देश के प्रति गर्व की भावना जगाती है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या यह यात्रा राष्ट्रीय पर्व से पहले निकालना उचित है, और क्या राष्ट्रीय पर्व के दिन सरकारी संस्थाओं द्वारा परंपरागत रैली या समारोह न निकालना सही है?

राष्ट्रीय पर्व — चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी — केवल एक सरकारी अवकाश या औपचारिक ध्वजारोहण का दिन नहीं हैं। यह दिन हमारी आज़ादी की लड़ाई, बलिदानों और संविधान के मूल्यों को याद करने का अवसर है। इन दिनों का उत्सव जनभागीदारी से ही सार्थक बनता है। ध्वजारोहण, देशभक्ति गीत, बच्चों की प्रस्तुतियां और सार्वजनिक समारोह इस दिन की आत्मा होते हैं।

अगर तिरंगा यात्रा राष्ट्रीय पर्व से एक-दो दिन पहले निकाली जाए, तो यह पर्व का माहौल बनाने और जन-उत्साह जगाने का अच्छा तरीका है। यह यात्रा पर्व के पूरक के रूप में दिख सकती है। लेकिन जब किसी शासकीय संस्था द्वारा राष्ट्रीय पर्व के दिन रैली न निकालकर केवल पहले की यात्रा पर ही संतोष कर लिया जाता है, तब यह पर्व की गरिमा को कम कर देता है। इससे जनता के मन में यह संदेश जा सकता है कि असली पर्व का महत्व औपचारिकता में सिमट गया है।

सरकारी संस्थाओं की जिम्मेदारी केवल यात्रा निकालने तक सीमित नहीं है। उनका दायित्व है कि राष्ट्रीय पर्व के दिन पूरे सम्मान और गंभीरता के साथ कार्यक्रम आयोजित करें, जिसमें जनता की सक्रिय भागीदारी हो। राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान का अर्थ सिर्फ उसे हाथ में लेकर चलना नहीं है, बल्कि उसकी रक्षा करने वाले मूल्यों — स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे और लोकतंत्र — को व्यवहार में निभाना भी है।

समय आ गया है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि इस बात पर विचार करें:तिरंगा यात्रा एक उत्सव का हिस्सा है, पर राष्ट्रीय पर्व का विकल्प नहीं।
त्योहार तभी जीवंत रहेंगे जब उन्हें पूरे सम्मान, जनभागीदारी और परंपरा के साथ मनाया जाएगा।

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