
Makhanlal Chaturvedi 136th Birth Anniversary : स्वतंत्रता संग्राम के कालखंड में हर क्रांतिकारी ने मातृभूमि को स्वतंत्र कराने का यथाशक्ति परिश्रम किया। किसी ने अहिंसा तो किसी ने अपनी ओजस्वी वाणी और कलम काे हथियार बनाकर विदेशी सत्ता काे झुकाने का काम किया। इसी कालखंड के लोकप्रहरी और कवियों की श्रेणी में एक नाम आता है बहुमुखी प्रतिभा के धनी माखनलाल चतुर्वेदी का। जिनकी अनेकों कविताएं देश के कई वीर और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। माखनलाल ने तत्कालीन वीरों की अभिलाषा को पुष्प की अभिलाषा के रूप में पिरोकर जन-जन तक पहुंचाया। …
‘…मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक। मातृ-भूमि पर शीश चढाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।’ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित ये वो पंक्तियां हैं जिन्हें 18 फरवरी 1922 को लिखा गया था। अर्थात् लगभग आठ दशक पहले। उस समय देश में पहुंओर आजादी का नारा ही गूंज रहा था। इसी संघर्ष के दौरान कई बारे ऐसे क्षण भी आएं जब माखनलाल चतुर्वेदी को जेल जाना पड़ा। आज हम भारत माता के इन्हीं सपूत जयंती मना रहे हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी का परिचय: देशभक्त कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म चार अप्रैल 1889 को बाबई, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। 15 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह हो गया था। 17 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने खंडवा में अध्यापन प्रारंभ कर दिया। इसी दौरान उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ था। माखनलाल जी के व्यक्तित्व के कई पहलू देखने को मिलते हैं। जैसे एक पत्रकार जिन्होंने प्रभा, कर्मवीर और प्रताप का संपादन किया, एक क्रांतिकारी जिन्होंने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसी गतिविधियों में बढ़-चढ़ भाग लिया। हालांकि जनता को स्वतंत्रता दिलाने के इस मार्ग पर उन्हें कई बार अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा प्रताड़ित किया, लेकिन इसके बावजूद वे अडिग रहे। माखनलाल चतुर्वेदी का नाम छायावाद की उन शख्सियतों में से एक है जिनके कारण वह एक युग अमर हो गया। इनकी कई रचनाएं ऐसी भी हैं जहां उन्होंने प्रकृति के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर तथा रहस्यात्मक प्रेम उनकी आत्मा रही। इसीलिए उन्हें एक भारतीय आत्मा के नाम से भी जाना जाता है।
जब निभाई ‘प्रताप’ के संपादक की भूमिका: माखनलाल चतुर्वेदी ने साल 1913 में ‘प्रभा पत्रिका’ का संपादन किया। इसी समय ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए, जिनसे ये बेहद प्रभावित हुए। इन्होंने साल 1918 में प्रसिद्ध ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ नाटक की रचना की और 1919 में जबलपुर में ‘कर्मयुद्ध’ का प्रकाशन किया। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण 1921 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, इसके बाद 1922 में ये रिहा हुए। साल 1924 में गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ्तारी के बाद इन्होंने प्रताप का संपादन किया।

ये हैं प्रमुख रचनाएं: 20वीं सदी की शुरुआत में माखनलाल ने काव्य लेखन शुरू किया था। हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिनी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, ‘बीजुरी काजल आंज रही’ जैसी प्रमुख कृतियों सहित कई अन्य रचनाएं कीं। महान साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी ने 30 जनवरी, 1968 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
…तो इसलिए छोड़ दिया था सीएम का पद: कवयित्री महादेवी वर्मा अपने साथियों को इनका एक किस्सा बताती थीं कि स्वतंत्रता संग्राम के समय माखनलाल चतुर्वेदी को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया था। सूचना मिलने के उपरांत इन्होंने कहा कि “शिक्षक और साहित्यकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बना तो मेरी पदावनति होगी।” ये कहकर मुख्यमंत्री के पद को पंडित जी ने ठुकरा दिया था।
उपलब्धियां:
पत्रकार परिषद के अध्यक्ष (1929)
म.प्र.हिंदी साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति
भारत छोड़ो आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता (1942) सागर वि.वि. से डी.लिट् की मानद उपाधि
हिमकिरीटिनी रचना के लिए 1943 में देव पुरस्कार
पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के लिए 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि
1963 में पद्मभूषण
हिमतरंगिणी के लिये उन्हें 1955 में साहित्य अकादमी पुरस्कार