शिक्षण सत्र को शुरू हुए एक महीना से ज्यादा हो चुका है, लेकिन जिले के स्कूलों की कार्यप्रणाली अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। खासकर प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले नौनिहाल एक बार फिर भारी भरकम बस्तों के बोझ तले दबे नजर आ रहे हैं। शासन द्वारा निर्धारित ‘स्कूल बैग नीति-2020’ की स्पष्ट गाइडलाइन के बावजूद बड़वानी जिले के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में इस नियम की खुलेआम अनदेखी हो रही है।
बच्चे ढो रहे 8 से 10 किलो तक का बोझ
नीति के अनुसार कक्षा पहली से दूसरी तक के बच्चों के बैग का अधिकतम वजन 2.2 किलोग्राम, कक्षा तीसरी से पांचवीं तक के लिए 2.5 किलोग्राम और कक्षा आठवीं से दसवीं तक के लिए 4.5 किलोग्राम निर्धारित है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई बच्चे रोज़ 8 से 10 किलो तक के बैग ढोने को मजबूर हैं।
स्कूलों के पुराने तर्क—’सभी किताबें जरूरी’
बड़वानी के एक निजी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र के पिता सुनील यादव ने बताया, “जब हमने स्कूल प्रबंधन से शिकायत की तो उन्होंने साफ कह दिया कि पाठ्यक्रम की सभी किताबें जरूरी हैं। कोई विकल्प नहीं बताया गया।” यह जवाब अधिकांश निजी स्कूलों की वही पुरानी मानसिकता दर्शाता है, जिसमें नियमों की अनदेखी करना एक सामान्य व्यवहार बन चुका है।
नीति की अनदेखी: नैतिक शिक्षा और कंप्यूटर के लिए भी किताबें
नई शिक्षा नीति के अनुसार नैतिक शिक्षा, सामान्य ज्ञान और कंप्यूटर जैसे विषयों की कक्षाएं बिना किताबों के ली जानी चाहिए, लेकिन स्कूल प्रबंधन इन विषयों के लिए भी किताबें खरीदवाकर बच्चों पर अतिरिक्त आर्थिक और मानसिक बोझ डाल रहे हैं। इसके अलावा, दूसरी कक्षा तक के बच्चों को होमवर्क देना भी प्रतिबंधित है, फिर भी कई स्कूलों में बच्चों को रोजाना होमवर्क दिया जा रहा है।
डॉक्टरों की चेतावनी: खतरे में बच्चों का शारीरिक विकास
जिला अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सकों ने इसे बेहद चिंताजनक स्थिति बताया है। उनके अनुसार, “कम उम्र में अत्यधिक वजन उठाने से बच्चों की रीढ़ की हड्डी प्रभावित हो सकती है, जिससे कमर दर्द, थकावट, मांसपेशियों में खिंचाव और शरीर के झुकाव जैसी स्थायी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। यदि यह स्थिति जारी रही तो बच्चों की लंबाई तक रुक सकती है।”
प्रशासन ने झाड़ा पल्ला: शिकायत नहीं आई, इसलिए कार्रवाई नहीं
शीला चौहान, जिला शिक्षा अधिकारी बड़वानी ने कहा, “स्कूल बैग नीति को लेकर सभी स्कूलों को निर्देश भेजे गए हैं। यदि किसी स्कूल के खिलाफ शिकायत आती है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।” हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब तक किसी अभिभावक ने औपचारिक रूप से शिकायत नहीं की है।
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विश्लेषण:
यह मामला न केवल नीतिगत उल्लंघन का है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति से भी जुड़ा हुआ है। स्कूलों को व्यवसायिक रवैये से ऊपर उठकर नीति पालन सुनिश्चित करना चाहिए, वहीं अभिभावकों को भी शिकायत दर्ज कराने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए। प्रशासन को चाहिए कि वह स्वप्रेरणा से निगरानी करे, न कि सिर्फ शिकायत आने की प्रतीक्षा करे।