Denvapost Exclusive: मध्यप्रदेश किसान प्रधान प्रदेश है। बावजूद इसके किसानों की कई समस्याएं ऐसी है जिनका निराकरण आज तक नहीं हुआ। वहीं सरकार किसानों के नाम पर किस तरह सरकारी खजाने को लूटा रही है, आज की खबर इसी की पड़ताल करती है।
मामला किसान, सरकार और बिजली कंपनी से जुड़ा है। किसानों के बिजली बिल पर सरकार 94.45% सब्सिडी देती है। इस सब्सिडी में कैपेसिटर सरचार्ज भी जुड़ा है जिसके नाम पर हर साल सरकार बिजली कंपनी को सरकार बेवजह 16.53 करोड़ रूपए दे रही है। क्यों…पढ़िए हमारी आज की पड़ताल करती है रिपोर्ट में।
सिर्फ 20 प्रतिशत ही होता है कलेक्शन
बिजली कंपनी के डीई संजय यादव बताते हैं कि किसानों के स्थायी कनेक्शन के बिजली बिल हर 6 महीने में आते हैं, जिसमें कलेक्शन सिर्फ 20 प्रतिशत का ही होता है। 29 हजार कनेक्शन के हिसाब से हर साल सिर्फ 2.174 करोड़ की वसूली ही हो पाती है जबकि 8.969 करोड़ की रिकवरी हर साल बिजली कंपनी के लिए चुनौती होती है। जबकि सरकार कैपेसिटर सरचार्ज के नाम पर फिजूलखर्ची कर रही है। यदि वह बंद हो जाए तो किसानों के बिजली बिल ही फ्री कर दें, तब भी सरकारी खजाने में हर साल 5.66 करोड़ बच जाएं। कैसे अब हम आपको आगे वह समझाते हैं।
सोहागपुर के किसानों के बिल ही माफ कर दे सरकार तब भी खजाने में बचेंगे करोड़ों
किसानों के पंप में कैपेसिटर नहीं होने पर बिजली कंपनी हर साल 1425 करोड़ रूपए जुर्माने के रूप में वसूल रही है। जबकि कैपेसिटर लगाने का खर्चा मात्र 73 लाख से 87 लाख है। यदि सरकार प्रत्येक किसान के स्थायी कनेक्शन पर कैपेसिटर लगा दे तब भी सरकार के पास 56.47 करोड़ बचेंगे। सोहागपुर और माखननगर में किसानों के पास 29 हजार स्थायी कनेक्शन है। 1 किसान हर साल लगभग 3750 रूपए का बिजली बिल दे रहा है, मतलब 29 हजार किसान हर साल अपनी ओर से 10.87 करोड़ बिजली कंपनी को दे रहा है। कैपेसिटर लगाने के बाद यदि यह बिल भी किसानों का सरकार ही जमा कर दे तब भी 56.47 करोड़ सरकारी खजाने में बच जाएंगे।
क्यों लगाया जाता है कैपेसिटर सरचार्ज
मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के पीआरओ मनोज द्विवेदी ने बताया कि कैपेसिटर सरचार्ज उन किसानों पर लगाया जाता है जो अपने कनेक्शन में इसे नहीं लगाते हैं। सामान्य भाषा में कहें तो यह एक तरह का जुर्माना ही है, जो कैपेसिटर नहीं लगाने के लिए वसूला जाता है। मनोज द्विवेदी ने बताया कि कैपेसिटर रिएक्टिव पॉवर को रोकता है। जिससे पंप को स्मूथ सप्लाई मिलती है। कैपेसिटर नहीं लगाने पर हम उतना चार्ज किसानों को लेते हैं, क्योंकि रिएक्टिव पॉवर से बिजली कंपनी के उपकरण खराब होते हैं।
किसान के बिजली बिल पर इस तरह दी जाती है सब्सिडी
5 एचपी कनेक्शन को ही यदि हम औसत मानकर गणना करें तो हर 6 महीने में एक बिजली बिल पर सरकार अपनी ओर से 27186 रूपए सब्सिडी देती है। इंदिरा किसान ज्योति योजना से 1875 रूपए की सब्सिडी मिलती है, कैपेसिटर सरचार्ज का 2850 रूपए भी सरकार ही वहन करती है। ऐसे में 6 महीने के एक बिल पर सब्सिडी की राशि 31911 रूपए होती है। कुल बिल की राशि 33786 रूपए होती है, सब्सिडी को हटाकर किसान एक बिल का सिर्फ 1875 रूपए बिजली कंपनी को हर 6 महीने में देता है। मतलब कुल बिल राशि का किसान सिर्फ 5.55% राशि ही चुकाता है।
कैपेसिटर सरचार्ज के नाम पर करोड़ों की बर्बादी
किसान के बिजली बिल में अकेले कैपेसिटर सरचार्ज के नाम पर सरकार हर साल करोड़ों की बर्बादी कर रही है। भारतीय किसान संघ के उदय पांडे बताते हैं कि जिस कैपेसिटर सरचार्ज का सरकार एक बिल पर हर 6 महीने में 2850 रूपए और हर साल 5700 रूपए बिजली कंपनी को दे रही है, आपको जानकर यह हैरानी होगी कि वह कैपेसिटर (5 एचपी के पंप के लिए 1 केवीआर के कैपेसिटर का इस्तेमाल होता है) मार्केट में अच्छे से अच्छे कंपनी का 250 से 300 रूपए में आता है। मतलब ये कि यदि हर किसान के बिजली बिल में कैपेसिटर सरचार्ज देने की जगह सरकार किसानों को कैपेसिटर ही खरीदकर दे दे तो सिर्फ एक बिल में ही सरकार को एक साल में 5400 रूपए तक बच जाएं।
ऐसे समझे सरकारी खजाने को हो रहे नुकसान का गणित…
प्रदेश में 5 एचपी कनेक्शन में पंप पर केपेसिटर नहीं होने से बिजली कंपनी किसान पर हर 6 महीने में 2850 रूपए का सरचार्ज लगाती है, हालांकि यह सरचार्ज किसान नहीं देता बल्कि यह राशि सरकार बिजली कंपनी को चुकाती है। मतलब एक साल में सरकार किसान के एक कनेक्शन पर 5700 रूपए जुर्माने के तौर पर बिजली कंपनी को देती है। सोहागपुर और माखननगर में 29 हजार किसानों का औसतन 5 एचपी का ही कनेक्शन मान लिए जाए तो इसका मतलब यह हुआ कि सरकार हर साल 16.53 करोड़ रूपए बिजली कंपनी को दे रही है। जबकि यही सरकार यदि हर किसान को कैपेसिटर लगा दे तो सिर्फ एक बार ही 72.50 लाख से लेकर 87 लाख का खर्चा आएगा।