सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: रुकी हुई निर्माण परियोजनाओं को मिली मंजूरी, राज्यों को मिली अधिक शक्ति

Central green nod not needed for constructions of 20,000-150,000 sqm

स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, औद्योगिक शेड और आवासीय निर्माण को राहत; केंद्र से पर्यावरणीय मंजूरी की बाध्यता खत्म

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में देश भर में रुकी पड़ी 20,000 से 1,50,000 वर्ग मीटर कवर्ड एरिया वाली निर्माण परियोजनाओं को राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) से मंजूरी लेकर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी है।

इससे विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों, आवासीय परियोजनाओं, औद्योगिक शेड और छात्रावासों के निर्माण को बड़ी राहत मिली है, जिन्हें पहले केंद्र सरकार की पर्यावरणीय मंजूरी के अभाव में रोक दिया गया था।

पृष्ठभूमि: वनशक्ति याचिका और 24 फरवरी की रोक

यह मामला पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे एनजीओ वनशक्ति की याचिका से जुड़ा है, जिसमें केंद्र सरकार की 29 जनवरी 2024 की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट की पिछली पीठ ने 24 फरवरी को एकतरफा रोक लगाते हुए इन मानदंडों में ढील पर आपत्ति जताई थी।

एनजीओ का तर्क था कि पर्यावरणीय मंजूरी के नियमों में ढील से प्राकृतिक और वन्य क्षेत्रों को गंभीर खतरा होगा। लेकिन इसका प्रभाव यह हुआ कि देशभर में हजारों निर्माण परियोजनाएं ठप पड़ गईं, जिनमें 700 से अधिक आवेदन केवल महाराष्ट्र में अटके हुए थे।

कोर्ट का निर्णय: विकास और पर्यावरण का संतुलन जरूरी

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया:

> “विकास गतिविधियों को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता। पर्यावरण संरक्षण सर्वोपरि है, लेकिन विकास को स्थायी रूप से ठप करना समाधान नहीं।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि SEIAA भी विशेषज्ञ संस्था है और उसके पास आवश्यक योग्यता है कि वह परियोजनाओं का पर्यावरणीय आकलन कर सके।

केंद्र बनाम राज्य का अधिकार: अस्पष्टता खत्म

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की अधिसूचना को बरकरार रखते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया कि:

सामान्य क्षेत्रों में राज्य स्तरीय प्राधिकरण (SEIAA) ही मंजूरी देगा।

लेकिन यदि परियोजना:

पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र,

वन्यजीव अभयारण्य के पास,

गंभीर प्रदूषित क्षेत्र (CPA/SPA) या

अंतर-राज्यीय सीमा के पास स्थित है
तो वहां मंजूरी का अधिकार केंद्र सरकार को होगा।

राहत की सांस: रियल एस्टेट और एजुकेशन सेक्टर को मिली गति

रियल एस्टेट डेवलपर्स की संस्था CREDAI की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आत्माराम नाडकर्णी ने कोर्ट के रुख का स्वागत किया।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी पक्ष रखा कि केंद्र के पास राज्यों की हर परियोजना का मूल्यांकन करने के लिए संसाधन नहीं हैं, और राज्य प्राधिकरणों की क्षमता पर भरोसा किया जाना चाहिए।

प्रभाव और निष्कर्ष

हजारों रुकी हुई परियोजनाओं को अब गति मिलेगी, विशेषकर शिक्षा और औद्योगिक क्षेत्रों में।

इससे निवेश, रोजगार और शहरी विकास को बल मिलेगा।

लेकिन कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि पर्यावरणीय जांच की प्रक्रिया कमजोर न हो — राज्य एजेंसियों को पूरी पारदर्शिता और सतर्कता से कार्य करना होगा।

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