डिजिटल हाजिरी का नया : पारदर्शिता की आड़ में शिक्षकों पर सख्ती

मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी कॉलेजों में हाजिरी प्रणाली को पूरी तरह डिजिटल बनाने का ऐलान कर दिया है। अब प्रोफेसर से लेकर गेस्ट फैकल्टी तक सभी को सार्थक एप से ही उपस्थिति दर्ज करनी होगी। शासन का दावा है कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी, लेकिन हकीकत यह है कि यह कदम शिक्षकों के लिए नई परेशानियों का सबब बन गया है।

आदेश के नाम पर सख्ती

आयुक्त प्रबल सिपाहा के आदेश में साफ कहा गया है कि सभी अधिकारी-कर्मचारी सिर्फ कार्यस्थल से ही हाजिरी लगाएंगे। क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक (एडी) और कॉलेज प्राचार्य पर पूरी जिम्मेदारी डाली गई है और गड़बड़ी पाए जाने पर उन पर सीधे कार्रवाई होगी। यानी शासन ने जिम्मेदारी के नाम पर पूरी व्यवस्था का बोझ सीधे कॉलेज प्रशासन और शिक्षकों पर डाल दिया है।

आसान नहीं डिजिटल हाजिरी

सरकार का दावा है कि अब एनालिटिकल डैशबोर्ड से हाजिरी का डेटा रीयल-टाइम में कलेक्टर और आयुक्त तक जाएगा। लेकिन बड़े कॉलेज कैंपस (20–25 एकड़) और नेटवर्क की दिक्कतों के बीच हर बार एक ही स्थान से एप पर हाजिरी लगाना कितना व्यावहारिक होगा, इस पर कोई जवाब नहीं।

शिक्षकों की नाराजगी

प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष प्रो. आनंद शर्मा का कहना है—
“शासन का उद्देश्य उपस्थिति वेरीफाई करना नहीं बल्कि शिक्षकों को परेशान करना है।”
वास्तव में, शिक्षकों का तर्क सही भी है। परीक्षा, प्रैक्टिकल और रिसर्च कार्य के बीच हर बार मोबाइल लेकर एक तय स्थान पर जाकर हाजिरी लगाना समय की बर्बादी ही है।

पारदर्शिता या अविश्वास?

सरकार इसे पारदर्शिता का कदम बता रही है, लेकिन असल में यह शिक्षकों पर अविश्वास की मुहर है। उपस्थिति की निगरानी अब सीधे प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचाई जाएगी, मानो शिक्षक ही सबसे गैर-जिम्मेदार कर्मचारी हों। सवाल यह है कि क्या जवाबदेही केवल डिजिटल निगरानी से ही तय होती है?


डिजिटल हाजिरी व्यवस्था कागजों पर भले ही पारदर्शिता की मिसाल बने, मगर ज़मीनी हकीकत में यह शिक्षकों के लिए झंझट और अविश्वास की नई जंजीर बनती दिख रही है। सुधार के नाम पर ऐसी कठोर व्यवस्थाएँ शिक्षा के माहौल को बेहतर बनाने के बजाय और जटिल बना सकती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!