
भारत में गुरु को सदा से सर्वोच्च स्थान दिया गया है। लेकिन 21वीं सदी में आते-आते शिक्षक की भूमिका, चुनौतियाँ और सामाजिक स्थिति तेजी से बदली है। सवाल यह है कि क्या आज के शिक्षक वही गरिमा और सम्मान पा रहे हैं, जो कभी समाज में स्वाभाविक रूप से मिल जाता था?
तकनीक और व्यावसायिकता की चुनौती
आज शिक्षा डिजिटल हो चुकी है। ऑनलाइन क्लास, स्मार्ट बोर्ड और एआई आधारित लर्निंग ने विद्यार्थियों को सूचना-समृद्ध तो बना दिया है, परंतु यह ज्ञान और विवेक की गारंटी नहीं देता।
शिक्षक अब केवल किताबें पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि तकनीक का उपयोग करके विद्यार्थियों को दिशा देने वाला मार्गदर्शक बन गया है।
दूसरी ओर, शिक्षा का बाजारीकरण और कोचिंग कल्चर ने शिक्षण को मिशन से पेशे में बदल दिया है। परिणामस्वरूप, गुरु-शिष्य का आत्मीय रिश्ता कमजोर होता जा रहा है।
प्रशासनिक बोझ और हाशिये पर शिक्षक
सरकारी स्कूलों के शिक्षक केवल अध्यापन तक सीमित नहीं हैं। उन्हें जनगणना, चुनाव, टीकाकरण, सर्वेक्षण और सरकारी योजनाओं के कार्यों में भी लगाया जाता है।
इससे उनकी मूल भूमिका प्रभावित होती है और विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती।
निजी स्कूलों में दूसरी तरह की समस्याएँ हैं—यहाँ शिक्षक अक्सर अनुबंध पर काम करते हैं और उन्हें स्थायित्व या पर्याप्त वेतन नहीं मिलता।
बदलता छात्र और शिक्षक-छात्र रिश्ता
सोशल मीडिया और तकनीक ने विद्यार्थियों को अधिक जागरूक और प्रश्नाकुल बना दिया है। वे अब केवल जानकारी नहीं चाहते, बल्कि संवाद और चर्चा चाहते हैं।
यह शिक्षक के लिए अवसर भी है और चुनौती भी। अवसर इसलिए कि वे छात्रों को क्रिटिकल थिंकिंग और विवेकशीलता की ओर ले जा सकते हैं, और चुनौती इसलिए कि परंपरागत “गुरु वचनं प्रमाणम्” वाला दौर अब नहीं रहा।
सम्मान की कमी, जिम्मेदारी अधिक
आज समाज में शिक्षक का सम्मान पहले जितना नहीं रहा।
जहाँ कभी गुरुजनों के चरण स्पर्श करना परंपरा थी, वहीं आज शिक्षकों को अक्सर अभिभावकों और प्रबंधन की आलोचना झेलनी पड़ती है।
विडंबना यह है कि जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं, लेकिन गरिमा और सम्मान घटते जा रहे हैं।
समाधान की राह
शिक्षा को केवल व्यवसाय न मानकर चरित्र निर्माण का साधन बनाया जाए।
शिक्षकों को प्रशासनिक बोझ से मुक्त कर पूरी तरह अध्यापन पर केंद्रित होने दिया जाए।
डिजिटल युग में भी शिक्षक और छात्र के बीच मानवीय रिश्ता कायम रखा जाए।
सरकार और समाज दोनों यह समझें कि शिक्षक ही भविष्य का निर्माता है।
आज का शिक्षक यदि तकनीक और मूल्य दोनों का संतुलन साध ले, तो वह आने वाली पीढ़ियों को केवल काबिल नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक बना सकता है।
शिक्षक दिवस पर यही संकल्प लेना जरूरी है कि शिक्षक को केवल नौकरी करने वाला कर्मचारी न समझा जाए, बल्कि राष्ट्रनिर्माण का स्तंभ माना जाए।