
गैरतगंज। विकासखंड के सिमरिया कलां गांव का शासकीय प्राथमिक विद्यालय इन दिनों अजीबोगरीब स्थिति के कारण चर्चा में है। यहां महज़ चार छात्रों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक तैनात हैं। सरकारी खजाने से इन पर सालाना लगभग 15 लाख रुपये का वेतन खर्च हो रहा है। यदि औसत निकाला जाए तो प्रति छात्र पर करीब 7.5 लाख रुपये का खर्च बैठता है।
पिछले साल तो हालात और भी चौंकाने वाले थे, जब पूरे स्कूल में सिर्फ एक ही छात्र दर्ज था, लेकिन उसे पढ़ाने के लिए दो शिक्षक कार्यरत थे। वर्तमान में तीन छात्र पहली कक्षा में और एक छात्र दूसरी कक्षा में पढ़ रहा है।
निजी स्कूलों की ओर झुकाव
शिक्षक गोपाल सिंह ठाकुर और शिक्षिका पल्लवी सक्सेना का कहना है कि गांव शहर के नजदीक है, इसलिए ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा की उम्मीद में निजी स्कूलों में भेजते हैं। यही वजह है कि सरकारी स्कूल में बच्चों की संख्या लगातार घटती जा रही है।
सरकार के आदेश लागू नहीं
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सरकार ने पहले ही आदेश जारी कर रखा है कि जिन स्कूलों में 20 या उससे कम छात्र हैं, उन्हें पास के स्कूलों में मर्ज किया जाए और शिक्षकों को उन स्कूलों में तैनात किया जाए जहां स्टाफ की कमी है। लेकिन गैरतगंज विकासखंड के कई स्कूलों में यह आदेश लागू नहीं हुआ।
अधिकारियों की उदासीनता
कम छात्रों वाले स्कूलों को मर्ज न करना और शिक्षकों को निष्प्रभावी तरीके से बिठाए रखना सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग पर सवाल खड़े करता है। इस मामले पर बीआरसीसी आलोक राजपूत का कहना है, “शासन-प्रशासन स्तर पर मर्जिंग के ऐसे कोई आदेश नहीं हैं, फिर भी मैं वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराऊंगा।”
बड़ा सवाल
ग्रामीण इलाकों में अभिभावकों का निजी स्कूलों की ओर रुझान और सरकारी आदेशों की अनदेखी, दोनों मिलकर यह साबित करते हैं कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार केवल कागजों तक सीमित है। यदि सरकार ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए, तो ऐसी व्यवस्थाएं बच्चों के भविष्य और सरकारी खजाने—दोनों के साथ खिलवाड़ करती रहेंगी।