विकास की गुलाबी तस्वीर बनाम खोखले दावे: सरकारी नीतियों की वास्तविकता

गौर करने वाली बात यह है कि सरकार ने महामारी को सही तरीके से  नहीं संभाला और अचानक बिना सोचे-समझे लगाए गए लॉकडाउन के कारण हजारों-हजार गरीब असहाय प्रवासियों को अपने घर तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, जब जरूरत हुई तो ऑक्सीजन सिलेंडर की भारी कमी हो गई। इस तरह की तमाम खामियां रहीं। रोजगार के मोर्चे पर भी प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इस प्रकार सरकार द्वारा किए गए ज्यादातर दावे गलत पाए जाते हैं। 

बजट का फोकस गरीबों, युवाओं, महिलाओं और किसानों पर है जो सही भी है, हालांकि बजट इस फोकस को प्रतिबिंबित नहीं करता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि सरकार की जीडीपी-केंद्रित रणनीति इन चार क्षेत्रों को अपने आप मदद नहीं करेगी। खास तौर पर गरीबों और युवाओं के लिए रोजगार-केंद्रित रणनीति की जरूरत है जो शिक्षा और कौशल निर्माण से मजबूती से जुड़ी हुई हो।

बड़े पैमाने पर उत्पादक रोजगार का सृजन समावेशी विकास तक पहुंचने का निश्चित तरीका है। हमारी 79% साक्षरता (21% निरक्षरता) और लगभग 30-35% आबादी माध्यमिक स्तर तक शिक्षित होने के कारण हमारा श्रमबल मुख्यधारा की विकास प्रक्रिया में भाग लेने के काबिल नहीं है। 

जब तक अच्छी शिक्षा और बड़ी संख्या में उत्पादक रोजगार सृजित करने पर होने वाले व्यय में भारी उछाल नहीं आता, युवा और गरीब हाशिये पर ही रहेंगे। 80 करोड़ लोगों (जनसंख्या का लगभग 60%) को मुफ्त अनाज देना एक तरह का दान ही है और इससे कहीं बेहतर विकल्प है उत्पादक रोजगार का सृजन। 

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