“दुर्लभ चुम्बकों की चुनौती: महिंद्रा की रणनीति और चीन पर निर्भरता का अंत?”

Mahindra plans 'engineering actions' to tackle magnet woes

नई दिल्ली : जब दुनिया जलवायु संकट की चुनौती से निपटने के लिए ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) क्रांति की ओर बढ़ रही है, उसी समय चीन ने दुर्लभ मृदा चुम्बकों (Rare Earth Magnets) पर निर्यात प्रतिबंध लगाकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को झटका दिया है। इस संकट का असर भारत की प्रमुख ऑटो कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा (M&M) पर भी पड़ा है — लेकिन कंपनी ने इसे अवसर में बदलने की रणनीति तैयार कर ली है।

क्या हैं दुर्लभ मृदा चुम्बक?

दुर्लभ मृदा चुम्बक, विशेष रूप से नीोडिमियम और प्रासियोडिमियम, EV मोटर्स, विंड टर्बाइन्स, ड्रोन, और रक्षा उपकरणों के लिए बेहद जरूरी हैं।
इनकी आपूर्ति का 87% से अधिक नियंत्रण चीन के पास है। जब चीन ने इन पर निर्यात नियंत्रण की घोषणा की, तब विश्वभर की कंपनियों में हलचल मच गई।

महिंद्रा की रणनीतिक तैयारी: संकट में अवसर

महिंद्रा समूह के CFO अमरज्योति बरुआ ने स्पष्ट किया है कि—

> “हमने जो भी कदम उठाए हैं, उनके आधार पर वित्त वर्ष 2025-26 तक की आपूर्ति प्रबंधित है। अब हमें कुछ मध्यम और दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान देना होगा।”

वैकल्पिक सोर्सिंग चैनल:

कंपनी ने चीन के अलावा जापान, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से चुम्बकों की आपूर्ति के लिए विकल्प खोज लिए हैं।

इंजीनियरिंग इनोवेशन:

M&M की टीम चुम्बकों के अल्प उपयोग वाले डिज़ाइन और स्थानीय कच्चे माल से विकल्प खोजने में जुटी है। इस दिशा में इन-हाउस R&D को तेज किया गया है।

भारतीय EV सेक्टर पर प्रभाव

भारत में EV निर्माण में तेजी के बावजूद अधिकांश कंपनियाँ अभी भी चीन पर निर्भर हैं। महिंद्रा की यह तैयारी बाकी कंपनियों के लिए एक मिसाल बन सकती है।

टाटा मोटर्स और TVS जैसी कंपनियाँ भी अब स्थानीयकरण और विविधीकरण की दिशा में प्रयासरत हैं।

यदि समय रहते घरेलू उत्पादन क्षमता विकसित न की गई, तो देश का ऊर्जा संक्रमण सपना महँगा साबित हो सकता है।

क्या आत्मनिर्भर भारत संभव है?

भारत के पास भी दुर्लभ मृदा तत्वों का सीमित भंडार है (जैसे झारखंड और आंध्र प्रदेश में), लेकिन उनका वाणिज्यिक दोहन अभी प्रारंभिक चरण में है। सरकार को चाहिए कि:

खनन से लेकर प्रसंस्करण तक घरेलू चेन विकसित की जाए।

पीएलआई योजना में दुर्लभ तत्व और चुम्बक निर्माण को भी शामिल किया जाए।

ISRO, DRDO और निजी कंपनियों के सहयोग से चुम्बकों के देशज विकल्प खोजे जाएं।

क्या यह भारत के लिए चेतावनी है?

चीन का यह कदम न केवल व्यापारिक बल्कि भूराजनीतिक चेतावनी है। यदि भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनना है, तो सिर्फ assembling नहीं, बल्कि core material independence की दिशा में नीतिगत बदलाव जरूरी हैं।

महिंद्रा एंड महिंद्रा ने इस वैश्विक आपूर्ति संकट को गंभीरता से लेते हुए तत्काल और दीर्घकालिक समाधान पर काम शुरू कर दिया है। यह संकट भारत के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में एक जरूरी सबक है — यदि अब भी न चेते, तो अगली बार EV नहीं, शायद सुरक्षा प्रणालियाँ संकट में हों।

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