
पन्ना/छतरपुर। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले से निकला यह मामला न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि पूरे सरकारी तंत्र की पोल खोलता है। जिस नाबालिग को सुरक्षा और संरक्षण मिलना चाहिए था, उसे बाल कल्याण समिति (CWC) ने आरोपी के ही परिवार के हवाले कर दिया। जमानत पर बाहर आया आरोपी बच्ची को दोबारा शिकार बना गया। यह सवाल खड़ा करता है—क्या बच्चों की सुरक्षा सरकारी संरक्षण में भी सुरक्षित नहीं?
आरोपी से लेकर समिति तक सब पर केस
पहले रेप केस में आरोपी जेल गया। लेकिन दूसरी वारदात के बाद मामला और बड़ा हो गया।
CWC के 5 सदस्य,वन स्टाफ सेंटर के 4 कर्मचारी और महिला एवं बाल विकास अधिकारी पर एफआईआर दर्ज हुई है।
छतरपुर पुलिस ने समिति के सदस्य आशीष बोस को गिरफ्तार कर लिया है, बाकी आरोपी फरार बताए जा रहे हैं।
जिम्मेदारी से भागता सिस्टम
यह घटना प्रशासन और राजनीति दोनों पर कटघरे में खड़ा करती है।
बाल कल्याण समिति: जिसे बच्ची की सुरक्षा करनी थी, उसने आरोपी के ही परिवार को सौंप दिया।
महिला एवं बाल विकास विभाग: निगरानी और जवाबदेही का जिम्मा होने के बावजूद घोर लापरवाही।
राज्य सरकार: अब तक केवल निचले स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई, लेकिन उच्च स्तर पर जवाबदेही तय नहीं।
बड़ा सवाल
जब CWC ही आरोपी पक्ष को संरक्षण देने लगे तो नाबालिगों की सुरक्षा का भरोसा किस पर किया जाए?
क्या यह सिर्फ लापरवाही है या साजिशन मदद?
क्या सरकार सिर्फ छोटे अधिकारियों की गिरफ्तारी दिखाकर खुद की जिम्मेदारी से बच सकती है?
क्या मुख्यमंत्री और महिला-बाल विकास मंत्री को इस पूरी घटना पर मौन रहने का अधिकार है?
प्रशासनिक हड़कंप, लेकिन विश्वास डगमगाया
मामले ने पूरे पन्ना और छतरपुर जिले में हड़कंप मचा दिया है। पुलिस दबाव में कार्रवाई कर रही है, लेकिन सवाल यही है—
क्या कार्रवाई दोषियों तक ही सिमटेगी या सिस्टम को भी कटघरे में खड़ा किया जाएगा?
यह कांड बता रहा है कि सरकारी ढांचे में मौजूद भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता बच्चों की सुरक्षा के सबसे बड़े खतरे हैं। अगर दोषियों पर सख्त और उदाहरण पेश करने वाली कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले वक्त में यह नज़ीर बनेगी कि सुरक्षा देने वाले ही सबसे बड़े खतरे बन सकते हैं।