
दमोह (विशेष प्रतिनिधि)।
आज़ादी के 77 साल बाद भी जब एक गांव अपनी पहली पक्की सड़क का इंतज़ार कर रहा हो, तो यह केवल विकास की असफलता नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता का प्रतीक बन जाता है। दमोह जिले के तेंदूखेड़ा ब्लॉक के हाथी घाट गांव के ग्रामीणों ने रविवार को कच्ची सड़क पर धान की रोपाई कर अनोखे ढंग से विरोध दर्ज कराया।
सड़क नहीं, दलदल है ये
ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के मौसम में यह रास्ता किसी दलदल से कम नहीं होता—घुटनों तक पानी, कीचड़ और जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे। सबसे ज्यादा परेशान स्कूल जाने वाले बच्चे, बुजुर्ग और बीमार लोग होते हैं। गाड़ियों का चलना तो दूर, पैदल चलना तक जोखिमभरा हो जाता है।
कई बार दी आवाज, हर बार मिली चुप्पी
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे चंद्रभान सिंह ने बताया कि वर्षों से ग्रामीण स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से सड़क निर्माण की गुहार लगाते आए हैं, लेकिन हर बार आश्वासन मिला, काम नहीं। “हमारे लिए यह सड़क नहीं, जीवन रेखा है,” चंद्रभान ने कहा।
धान की रोपाई के पीछे की व्यथा
थक-हार कर ग्रामीणों ने अब इसी दलदली रास्ते पर धान की रोपाई कर विरोध जताया, ताकि जिम्मेदार लोग देखें कि यह सड़क नहीं, एक बंजर खेत है। प्रदर्शन में महिलाएं, बुजुर्ग और युवा सभी शामिल हुए।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
प्रदर्शन की खबर सामने आने के बाद जिला पंचायत सीईओ प्रवीण फुलपगारे ने जांच की बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ग्रामीण वर्षों से मांग कर रहे हैं तो जनपद सीईओ ने अब तक क्यों नहीं ध्यान दिया, इसकी भी समीक्षा होगी। उन्होंने ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि वे सड़क निर्माण की प्रक्रिया जल्द शुरू कराने का प्रयास करेंगे।
विश्लेषण: यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं
हाथी घाट गांव की स्थिति मध्यप्रदेश के सैकड़ों ऐसे गांवों की आवाज़ है, जहां सड़कें अभी भी चुनावी वादों तक सीमित हैं। यह विरोध सिर्फ एक सड़क के लिए नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन की बुनियादी मांग के लिए है। यदि ऐसे विरोधों को केवल “सुनवाई” तक सीमित रखा गया, तो यह लोकतंत्र के प्रति ग्रामीण जनता का भरोसा खोने की शुरुआत हो सकती है।