जम्मू-कश्मीर में राज्य के दर्जे की बहाली पर उमर अब्दुल्ला का सियासी वार और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल

Don’t link J&K’s statehood to terror, Omar says day after SC’s Pahalgam reference
Omar Abdullah (File photo)

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया। तब से राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग राजनीतिक विमर्श में लगातार बनी हुई है। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य के दर्जे पर विचार करते समय “पहलगाम जैसी घटनाओं” को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह टिप्पणी 22 अप्रैल के उस आतंकी हमले से जुड़ी है, जिसमें 26 लोग, अधिकतर पर्यटक, मारे गए थे।

उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सीधा पलटवार किया। उन्होंने पूछा—

> “क्या पहलगाम के हत्यारे और पड़ोसी देश में उनके आका यह तय करेंगे कि हम एक राज्य होंगे या नहीं?”

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को “दुर्भाग्यपूर्ण” कहा और स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को उस अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता, जिसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है।

हस्ताक्षर अभियान का ऐलान

उमर ने आठ हफ्तों में सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में राज्य के दर्जे की बहाली के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाने की घोषणा की। इन हस्ताक्षरों को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने की योजना है, ताकि “लोगों की आवाज़ सीधे दिल्ली तक” पहुंच सके। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को याचिकाओं पर जवाब देने के लिए आठ हफ्तों का समय दिया है—यानी सियासी और कानूनी समय-सीमा एक जैसी हो गई है।

दिल्ली से निराशा

उमर ने खुलासा किया कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी से राज्य के दर्जे को लेकर घोषणा की उम्मीद थी। “हमें बताया गया था कि कागज़ात तैयार हैं, बस समय की बात है—लेकिन कुछ नहीं हुआ,” उन्होंने कहा।

केंद्र शासित प्रदेश की सीमाएँ

उमर ने अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री होना “दर्द और चिंता” से भरा है। गृह जैसे अहम विभाग उपराज्यपाल के पास हैं और मुख्यमंत्री के फैसलों को बदला या नजरअंदाज किया जा सकता है। उन्होंने मौजूदा ढांचे को “ऐसे घोड़े” से तुलना की जिसके आगे के दोनों पैर बंधे हों और फिर उससे दौड़ने की उम्मीद की जाए।

लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल

उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में नौकरशाही जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह नहीं है, जिससे लोकतांत्रिक जवाबदेही कमजोर होती है और शासन में जनता की भागीदारी घटती है।

विश्लेषण: राजनीतिक और संवैधानिक मायने

1. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर प्रतिरोध –
उमर की प्रतिक्रिया सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि संवैधानिक भी है। यदि राज्य के दर्जे का निर्धारण सुरक्षा घटनाओं पर आधारित होगा, तो यह संघीय ढांचे में नजीर बन सकता है, जो अन्य राज्यों के लिए भी संवेदनशील है।

2. जन-आंदोलन के जरिए दबाव –
हस्ताक्षर अभियान कानूनी प्रक्रिया के साथ-साथ एक राजनीतिक दबाव-रणनीति भी है, जो राष्ट्रीय मीडिया और केंद्र सरकार का ध्यान खींच सकती है।

3. केंद्र बनाम राज्य की शक्ति-संतुलन बहस –
केंद्र शासित प्रदेश मॉडल में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच शक्ति-संघर्ष का मुद्दा दिल्ली और पुडुचेरी जैसे अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में भी देखने को मिला है। जम्मू-कश्मीर में यह बहस संवेदनशीलता के साथ जुड़ती है, क्योंकि यहां पहले राज्य का दर्जा था।

4. दिल्ली के लिए राजनीतिक संकेत –
उमर का भाषण एक चेतावनी की तरह भी है—अगर राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया गया तो जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा की राजनीति और जनता के बीच भरोसे की खाई और गहरी हो सकती है।

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