नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस ने बनाई – लोकसभा चुनाव 2024 के लिए योजना 475

लोकसभा चुनाव में एक साल से भी का ही वक्त अब बचा है। इस बीच सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही प्लान 2024 में जुट गए हैं। एक तरफ भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों तक को दो-दो कठिन सीटों पर लगा दिया है तो वहीं विपक्ष भी उससे मुकाबले को तैयार हो रहा है। इस बीच विपक्ष ने ‘एक सीट पर एक उम्मीदवार’ का फॉर्मूला तैयार कर लिया है। इसके तहत विपक्ष देश भर की कुल 475 लोकसभा सीटों पर भाजपा के मुकाबले एक साझा उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं , करीब 85 फीसदी सीटें इस रणनीति के तहत आ जाएंगी।

इस फॉर्मूले की अगुवाई नीतीश कुमार और कांग्रेस करते दिख रहे हैं। बीते करीब एक महीनें में नीतीश कुमार और कांग्रेस नेतृत्व की दो बार मुलाकात हो चुकी है। जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मुख्य सलाहकार केसी त्यागी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इसका खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि हम इस चुनाव में 1974 का बिहार मॉडल लागू करना चाहते हैं। 1977 में कैसे कांग्रेस के मुकाबले विपक्ष एक हो गया था और फिर 1989 में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ वीपी सिंह मॉडल भी एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है। तभी एक सीट पर एक उम्मीदवार उतारकर ही सफलता मिली थी।

इस बार लोकसभा चुनाव में भी ऐसी ही रणनीति की तैयारी है। केसी त्यागी ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारे पार्टनर भाजपा से मजबूती से मुकाबला करें। इसलिए जहां भी जो भाजपा के मुकाबले मजबूत है, वहां सभी एकजुट होकर उसके खिलाफ उम्मीदवार उतारने की कोशिश करेंगे। यदि हम ऐसा करने में सफल रहे तो फिर भाजपा की सीटें कम हो जाएंगी और हमारे नंबरों में इजाफा होगा। इस रणनीति की बात करें तो विपक्ष खासतौर पर बिहार, महाराष्ट्र में मजबूत दिख रहा है। एक तरफ बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस एकजुट हैं तो वहीं महाराष्ट्र में भी उद्धव की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस संयुक्त विपक्ष के तौर पर चुनौती पेश कर सकते हैं।

महाराष्ट्र और बिहार में सफलता के ज्यादा आसार

अहम बात यह है कि इन दोनों ही राज्यों से काफी सीटें आती हैं। एक तरफ बिहार से 40 लोकसभा सीटें आती हैं तो वहीं महाराष्ट्र 48 सांसदों को भेजता है। यदि इन दो राज्यों में विपक्ष अपनी स्थिति मजबूत करता है तो यूपी की भरपाई हो सकेगी, जहां भाजपा मजबूत है। इस राज्य में कुल 80 सीटें हैं। नई संसद के उद्घाटन कार्यक्रम का जिस तरह से 20 विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया है, उसे भी एकता के टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है। बीते 4 सालों में ऐसी विपक्षी एकता कम ही देखने को मिली है।

बसपा जैसे दल बिगाड़ सकते हैं विपक्षी एकता की रणनीति

एक तरफ विपक्ष ने 475 सीटों पर मुकाबले का खाका तैयार कर लिया है तो वहीं बसपा जैसे दल रणनीति पर पानी भी फेर सकते हैं। दरअसल बसपा अब तक विपक्षी एकता में उस तरह शामिल नहीं हुई है, जैसे कांग्रेस, सपा, आरजेडी और जेडीयू साथ आए हैं। यही नहीं संसद भवन के आयोजन में भी वह जा रही है और विपक्ष को मायावती ने आईना दिखाते हुए पूछा भी है कि आप लोगों ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ उम्मीदवार क्यों उतारा था। बसपा के अलावा वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी, अकाली दल और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां भी भाजपा के प्रति नरम ही हैं।

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