“भगवा आतंकवाद” या राजनीतिक साजिश? मालेगांव केस में नया मोड़

'An attempt to implicate leaders of Hindutva': Eknath Shinde backs Pragya Thakur; slams Rahul Gandhi for speaking Pakistan's language

नई दिल्ली/ठाणे – मालेगांव बम विस्फोट (2008) मामले में हाल ही में सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर शुरू हो गया है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शनिवार को साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के उस बयान का पुरजोर समर्थन किया जिसमें उन्होंने जाँच एजेंसियों पर जबरन बयान दिलवाने और यातना देने का आरोप लगाया है।

शिंदे का आरोप: “हिंदुत्व को बदनाम करने की साजिश थी”

ठाणे में मीडिया से बात करते हुए शिंदे ने कहा:

“मालेगांव और उससे पहले के धमाकों को ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम देकर कांग्रेस और यूपीए सरकार ने हिंदू धर्म का अपमान किया। एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने यहां तक कहा था कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भी फंसाया जाए। यह सब एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा था।”

शिंदे ने आरोप लगाया कि यूपीए शासनकाल में हिंदुत्व के प्रतीकों को टारगेट किया गया और यह सब राजनीति और वोटबैंक के लिए किया गया।

“PM मोदी का नाम लेने के लिए प्रताड़ित किया गया”

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, जिन्हें इस हफ्ते NIA अदालत ने अन्य छह आरोपियों के साथ बरी किया है, ने हाल ही में दावा किया था कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का नाम लेने के लिए प्रताड़ित किया गया।
उनके शब्दों में:

“मैंने किसी का नाम नहीं लिया क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलना चाहती थी।”

प्रज्ञा ने बताया कि वह अपनी आपबीती को एक पुस्तक के रूप में सामने लाने की तैयारी कर रही हैं।

शिंदे का राहुल गांधी पर हमला

एकनाथ शिंदे ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा:

“राहुल गांधी हमेशा पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं। वे वहां लोकप्रिय हैं… क्या यही देशभक्ति है?”
उन्होंने यह भी कहा कि “जिन नेताओं ने जांच एजेंसियों पर दबाव डाला, उनका नार्को टेस्ट हो और उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।”

NIA अदालत का फैसला: सबूत नाकाफी, आरोप से मुक्त

विशेष NIA अदालत ने फैसला दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी किया और मुआवजा देने का आदेश भी दिया।
हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि प्रज्ञा ठाकुर द्वारा लगाए गए यातना और दबाव के आरोपों का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।

मालेगांव विस्फोट मामला अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक और वैचारिक विमर्श का भी केंद्र बन चुका है। जहां एक ओर यह ‘न्याय की जीत’ का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सत्य और साजिश के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या इस मुद्दे पर कोई स्वतंत्र जांच होती है या यह एक और ‘राजनीतिक बयानबाजी’ बनकर रह जाएगा।

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