Narsingpur News : हाथीनाला बना मातम का झरना: तीन छात्रों की दर्दनाक मौत, प्रशासन बना मौन दर्शक

नरसिंहपुर/हाथीनाला। जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित प्राकृतिक जलप्रपात हाथीनाला-बिलधा वॉटरफॉल शुक्रवार को तीन परिवारों के लिए काल साबित हुआ। 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले तीन दोस्तों — तनमय शर्मा, अक्षत सोनी और अश्विन जाट — पिकनिक के लिए वहां गए थे, लेकिन जीवित वापस नहीं लौटे। देर रात करीब 11 बजे, तीनों के शव पानी से बरामद किए गए।

टिफिन में अधखाया पराठा, मां की आंखों में न मिटने वाला दर्द

तनमय की मां की बातें हर दिल को झकझोर देती हैं। वे कहती हैं, “सुबह टिफिन में पराठा रखकर दिया था। अब वही टिफिन तो मिला, पर मेरा बच्चा नहीं।” उन्होंने बेटे को रोका भी था, लेकिन आज वह सफेद चादर में लिपटा लौट आया।

अक्षत के पिता बताते हैं, “दो दिन पहले ही बेटे ने कहा था, पापा 12वीं के बाद कोटा भेजना है, इंजीनियर बनूंगा। अब वो सपना भी चला गया।”

5 बजे तक नहीं लौटे तो शुरू हुई तलाश

परिजनों के अनुसार, तीनों छात्र शुक्रवार दोपहर करीब 3 बजे बाइक से निकले थे। जब शाम 5 बजे तक घर नहीं लौटे, तो उनकी खोज शुरू हुई। हाथीनाला पहुंचने पर उनके कपड़े और बाइक वहां मिली। पुलिस व एसडीआरएफ को बुलाया गया। 6 घंटे चले सर्च ऑपरेशन के बाद अंधेरे और टॉर्च की रोशनी में शव निकाले गए।

हर मानसून में निगलता है ज़िंदगी, फिर भी नहीं चेता प्रशासन

स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो हाथीनाला वॉटरफॉल हर मानसून में हादसों का गवाह बनता है, लेकिन प्रशासन की नींद केवल मौतों के बाद ही खुलती है।

न कोई चेतावनी बोर्ड

न कोई बैरिकेडिंग

न तैनात सुरक्षा गार्ड

न जल प्रवाह चेतावनी व्यवस्था

एक ग्रामीण कहते हैं, “हर साल 1-2 हादसे होते हैं, पर कोई स्थायी समाधान नहीं। प्रशासन आंख मूंदे रहता है। जब कोई बड़ा हादसा होता है, तभी औपचारिकता निभाई जाती है।”

क्या यह महज हादसा था या एक व्यवस्थागत हत्या?

यह घटना एक बार फिर से यह सवाल खड़ा करती है — क्या प्राकृतिक स्थलों की सुरक्षा सिर्फ पर्यटकों की जिम्मेदारी है?
या प्रशासन की जवाबदेही कब तय होगी?
जब मौतें बार-बार चेतावनी देती हैं, तब भी अगर कोई इंतजाम न हो, तो क्या इसे “दुर्घटना” कहकर टालना न्यायसंगत है?

हाथीनाला जैसे जलप्रपातों पर चेतावनी बोर्ड और बैरिकेडिंग अनिवार्य की जाए।

मानसून अवधि में गार्ड और एसडीआरएफ की अस्थायी चौकी बनाई जाए।

खतरनाक स्थलों को डिजिटल नक्शों और मोबाइल ऐप्स में चिह्नित किया जाए।

स्कूल और कॉलेज स्तर पर मौसमी पर्यटन स्थलों पर खतरे की जानकारी दी जाए।

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