
Denva Post Exclusive: भारत के संविधान में अनुच्छेद 243 के तहत पंचायती राज की व्यवस्था दी गई है।इसी के तहत ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत गठित की जाती हैं। प्रत्येक ग्राम का एक मुखिया होता है, जो ग्राम प्रधान अथवा सरपंच कहलाता है। सामान्य रूप से संपूर्ण गांव के विकास की जिम्मेदारी इसी ग्राम प्रधान के कंधों पर होती है। सरपंच पति को दो सचिवों का व्यवहार पंसद नही,जिसके कारण नो माह से विकास नहीं आया ग्राम।देनवापोस्ट एक्सक्लूसिव में इसी ग्राम पंचायत की बात होगी।
माखनगर जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत बुधनी में नो माह के अंदर दो सचिवों को बदल कर तीसरे सचिव को प्रभार दिया गया। जब इसकी जानकारी देनवापोस्ट की टीम को मिली तो माजरा क्या है ? यह जानने के लिए ग्राम बुधनी पहुंची I वहा की सरपंच श्रीमति ज्योति मनीष चौहान से कारण जानने का प्रयास किया। लेकिन महिला सरपंच होने कारण उनकी जगह उनके पति मनीष चौहान से बात करने का सौभाग्य हमे प्राप्त हुआ। आपको यह बता दे कि शासन ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने व महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए आरक्षण किया है, तब से महिलाओं की स्थानीय शासन में भागीदारी बढ़ी है लेकिन क्या करे फिर भी बुधनी ग्राम पंचायत में सरपंच पति की व्यवस्था से ग्रामीण अच्छे खासे नाराज हैं, हो भी क्यों न ऐसे में सरपंच से ग्राम में विकास के आने की की कैसे अपेक्षा की जा सकती है।

एक फोन नही उठाता, दूसरे का व्यवहार ठीक नही
चुनाव के बाद जब अगस्त 2022 मे पंचायत बुधनी का प्रथम संमेलन हुआ उस समय सचिव ओमप्रकाश यादव की पद स्थापना पंचायत बुधनी में थी। लेकिन वह मात्र चार माह ही बुधनी पंचायत संभाल सके। ठीक उसके बाद प्रदीप शर्मा जनवरी 2023 में बुधनी का हाल जानने पहुंचे, वह भी तीन माह गुजारने के बाद भी बुधनी पंचायत को पहचान नहीं पाए और वापिस आ गए। फिर अप्रेल 2023 में आंनद गिरी गोस्वामी को बुधनी पंचायत की कमान दी गई कि ग्राम में कुछ कार्य हो सके । जब इस संबंध मे सरपंच पति मनीष चौहान से बात की गई तो उन्होने बताया कि उन्हे दोनो सचिवों का व्यवहार पंसद नही आया । वैसे उनका कहना भी जायज है कि सचिवों का व्यवहार जबतक ठीक नही होता है। जबतक पंचायत को विकास की जरूरत नही है।भला यह क्या बात हुई सरपंच पति को सचिवों का व्यवहार पंसद नही इसलिए करीब नो माह से विकास गांव नही आ पा रहा है।

रोजगार न मिलने से बनती है पलायन की स्थिति
ग्राम पंचायत बुधनी में मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना का सही ढंग से क्रियान्वयन न होने के कारण मजदूरो को रोजगार ढुढने के लिए गांव से बाहर जाना पड़ रहा है। गांव के ही महेश कहार ने बताया कि गांव में रोजगार न मिलने के कारण मजबूरी बस हमें पलायन करना पड़ता है। बच्चों को तो पालना है इसलिए मजदूरी के लिए हमें आसपास के गांवो और शहरों की ओर जाना पड़ता है। ग्रामीणों की पीड़ा से स्पष्ट होता है की ग्राम पंचायत बुधनी में प्रशासनिक नुमाइंदों कि किस तरह तानाशाही चल रही है। गांव के जागरूक नागरिक सीताराम बताते हैं की ग्राम पंचायत तो 15 अगस्त व 26 जनवरी को ही खुलती है। ग्राम के पंचों को भी ग्राम सभा होने की सूचना भी नहीं दी जाती जो पंच है उन्हें तो यह भी पता नहीं ग्रामसभा क्या होती है।