Narmadapuram News : पावरलेस महिला प्रतिनिधि, पति कर रहे अधिकारों का उपयोग

दीपक शर्मा/नर्मदापुरम : पंचायती राज में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर प्रदेश सरकार ने उन्हें सशक्त बनाने की पहल की है। उम्मीद थी कि महिलाएं पंच बनकर गांव के विकास में भागीदार बनेंगी। मुखिया बनकर गांव की सरकार चलाएगी, लेकिन जिले में ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। चुनाव जीतने के बाद ज्यादातर महिला प्रतिनिधि रबर स्टॉम्प बनकर रह गई हैं, जबकि उनके पति सरपंची चला रहे हैं। जिले की 425 ग्राम पंचायतों में से करीब 215 की सरपंच महिलाएं हैं, लेकिन ग्रामसभा की बैठक से लेकर गांव की चौपालों तक जनता की समस्याएं सुलझाने का काम उनके पति ही कर रहे हैं। यानी 98 फीसदी महिला प्रतिनिधि घर से बाहर नहीं निकल रहीं।

महज दो फीसदी सुधार
पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का स्तर सुधारने ३ साल पूर्व सरकार ने पंचायती राज में हिस्सेदारी 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दी थी। इससे लगा था कि जनप्रतिनिधि बनने से महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पंचायत चुनाव में आधी भागीदारी के बाद समाज में महिलाओं को जीवन स्तर में बदलाव पर किए गए सर्वेक्षण के आंकड़े निराश करने वाले हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो महज दो फीसदी महिलाएं ही जिले में घर की दहलीज पार कर गांव विकास में भागीदारी निभा रही हैं। ये ऐसी महिलाएं हैं, जो बिना पति व परिवार के अपने दम पर गांव व नगरीय निकायों की सरकार चला रही हैं।

लेटर पेड पर पति कर रहे हस्ताक्षर
पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण की चौंकाने वाली स्थिति यह है कि सरपंच व अध्यक्ष होने के बाद भी वह अपने कामकाज से अनजान है। सरपंच एवं अध्यक्ष सहित गांव की पंच तक हर काम उनके पति देखते हैं। बैठकों से लेकर जिला कार्यालय तक हर जगह पति ही फाइल लेकर जाते हैं। चौंकाने वाली हकीकत तो यह है कि सरकारी दस्तावेजों में जिले की 60 फीसदी महिला प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर भी उनके पति ही करते हैं।

निष्क्रिय हैं अधिकारी
पंचायती राज व्यवस्था में 50 फीसदी पदों पर निर्वाचित होने के बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों का उपयोग कर पाने में अपने परिजनों के चलते पूरी तरह से लाचार नजर आ रही हैं। जानकारों के अनुसार महिला जनप्रतिनिधियों की आड़ में उनके अधिकारों का उपयोग उनके पति या परिजन खुलेआम कर रहे हैं। अधिकारियों की बैठक तक में बेरोंकटोक महिला जनप्रतिनिधियों के पति जाते हैं ओैर अधिकारी उन्हें फटकार लगाने के बजाय चुप्पी साधे रहते हैं। जिला पंचायत एवं जनपद पंचायतों में अपनी पत्नी की तरफ से फाइल लेकर पहुंचने वाले पतियों को भी जिम्मेदार अधिकारी फटकार लगाने के बजाय महिला सशक्तिकरण की राह में रोड़ा अटकाने वालों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

चूल्हा चौका से नहीं छूटा नाता
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में आधी भागीदारी महिलाओं की है। पंचायत से लेकर जिला पंचायत व नगरीय निकायों तक महिला शक्ति का दबदबा है। इसके बाद भी जिले में महिलाओं की सामाजिक स्थित नहीं बदली। पंच-सरपंच जैसे पद पाकर भी अस्सी फीसदी महिलाएं चूल्हा चौका से बाहर नहीं निकल पाई हैं। ग्राम सभा की बैठक में पंचों के बीच घूंघट ओढ़कर बैठी महिला सरपंच पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण की जमीनी हकीकत को बयां कर रही हैं।

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