Narmadapuram News : कम वेतन के चक्कर में अप्रशिक्षित युवक-युवतियों के हाथों में दी जा रही बच्चों के शिक्षण की कमान

निजी स्कूलों में शिक्षकों की योग्यता पर नहीं शिक्षा विभाग का ध्यान

नर्मदापुरम/ दीपक शर्मा: प्राइवेट स्कूलों में बच्चों से हर माह के हिसाब से मोटी फीस वसूली जाती है, जबकि बच्चों को पढ़ाने वाले अधिकतर शिक्षक अप्रशिक्षित होते हैं। यह बच्चों के भविष्य के साथ सीधे-सीधे खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि शिक्षकों की योग्यता क्या है, लेकिन इसको लेकर अभिभावक भी ध्यान नहीं देते हैं। वहीं अभिभावकों की ओर से कोई समस्या नहीं होने से शिक्षा विभाग की ओर से भी जांच या कार्रवाइ्र नहीं की जाती है।

यह स्थिति कुछ ही प्राइवेट स्कूलों की नहीं है, बल्कि अधिकांश स्कूलों में छात्र-छात्राओं को अप्रशिक्षिक शिक्षक पढ़ा रहे हैं। शहर से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी ज्यादा खराब है, जहां अधिकारी निरीक्षण के लिए पहुंचते ही नहीं है। प्राइवेट स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षक धड़ल्ले से पढ़ाने के पीछे 3 कारण हैं। इसमें पहला कारण अभिभावकों में जागरुकता की कमी। अभिभावक यदि स्कूल संचालक से यह पूछने लग जाएं कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता क्या है। शैक्षणिक दस्तावेज मांगने पर पोल खुल जाएगी।

दूसरा शिक्षा अधिकारियों का बेपरवाह होना। किसी डीईओ या बीईओ ये जांच नहीं करते कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता क्या है। तीसरा कारण बेरोजगारी है, प्रशिक्षित शिक्षक पढ़ाने की एवज में वेतन ज्यादा मांगते हैं, जबकि 12वीं व बीए पास युवक युवतियां 2-4 हजार रुपए में आसानी से मिल जाते हैं।

प्रशिक्षित शिक्षक ही होने चाहिए

प्राइवेट स्कूलों के लिए भी नियम कायद बने हैं। इसकी पालना करना जरुरी है, वरना मान्यता रद्द करने का प्रावधान है। प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षिक शिक्षक होने चाहिए। इसमें एसटीसी, बीएड नहीं है तो कम से कम डीएड पास आउट तो होना ही चाहिए। अभिभावकों की जिम्मेदार है कि वे बच्चों का दाखिल कराने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि शिक्षक प्रशिक्षित है या नहीं।

कागजों में पढ़ाने कोई और हकीकत में पढ़ा रहा दूसरा

प्राइवेट स्कूल कुछ ऐसे लोग पढ़ा रहे हैं, जिनके पास डिग्री ही नहीं है। बिना डिग्रीधारी कम वेतन में मिल जाते हैं, जबकि डिग्री वाले वेतन ज्यादा लेते हैं। प्राइवेट शिक्षण संस्थान वाले इतने चतुर हैं कि उन्होंने कागज में उन्हीं लोगों शिक्षक दिखा रखा है, जिनके पास वैध डिग्री है। हकीकत देखें तो पढ़ा कोई और रहा है। शिक्षा विभाग की टीम निरीक्षण के लिए आती है तो संस्था संचालक किसी दूसरे की वैध डिग्री को पेश कर देते हैं। डिग्री देखकर टीम संतुष्ट हो जाती है, लेकिन टीम को यह पता ही नहीं होता कि जो डिग्री दिखाई है, उस नाम का व्यक्ति को यहां पढ़ाता ही नहीं है। संचालकों की इस तरह की पोलपट्टी का खुलासा करने के लिए शिक्षकों की योग्यता, नाम, सब्जेक्टर के साथ फोटो में होनी चाहिए।

पहले से हैं नियम…

शिक्षा विभाग से एक प्रतिनिधि की उपस्थिति में निजी स्कूल में शिक्षकों की भर्ती का नियम पहले से है। लेकिन निजी स्कूल इसका पालन नहीं कर रहे हैं। उन्हें डीईओ को भर्ती प्रक्रिया की सूचना पहले से देना चाहिए जो वे नहीं देते हैं। डीईओ को एक प्रतिनिधि की नियुक्ति करना चाहिए जो वर्तमान में नहीं हो रहा है।

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