पचमढ़ी (नर्मदापुरम)। सात पहाड़ों की कठिन चढ़ाई, 20 किलोमीटर का दुर्गम सफर और सिर्फ दस दिन का अवसर—इतनी ही शर्तें हैं पद्मशेष भगवान के दर्शन की। मध्यप्रदेश की हरीतिमा से आच्छादित पर्वतीय नगरी पचमढ़ी में स्थित नागद्वारी धाम न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह आस्था, इतिहास और रहस्य से जुड़ा एक अद्भुत स्थल भी है। नागपंचमी पर्व पर जब मंदिर के पट खुलते हैं, तो यहां हजारों नहीं, लाखों श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं।
गुफा में विराजते हैं पद्मशेष नागदेवता
करीब 100 फीट लंबी और मात्र 5 फीट चौड़ी यह गुफा नागदेवता पद्मशेष की पवित्र गुफा मानी जाती है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने भस्मासुर से बचने के लिए अपने गले का नाग यहीं छोड़ दिया था। तभी से यह गुफा पद्मशेष नागदेवता का निवास बन गई। नागपंचमी से पूर्व 10 दिन तक चलने वाली यात्रा के दौरान भक्त यहां तक पहुंचते हैं और विशेष पूजन करते हैं।
इतिहास में भी दर्ज है यह आस्था
ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन जेम्स फॉरसिथ की प्रसिद्ध पुस्तक “Highlands of Central India” में नागद्वारी यात्रा का उल्लेख मिलता है। साथ ही कहा जाता है कि 1800 के दशक में राजा भभूत सिंह और उनकी सेना ने नागद्वारी की गुफाओं में युद्ध रणनीति बनाई थी। बाद में यहां शिवलिंग की स्थापना हुई, जिससे यह स्थल शिव-नाग उपासना का प्रमुख केंद्र बन गया।
मन्नतों के देवता: संतान प्राप्ति से लेकर दोष निवारण तक
नागदेवता के पुजारी उमाकांत झाड़े बताते हैं कि यहां संतान प्राप्ति की मन्नतें विशेष रूप से पूरी होती हैं। महाराष्ट्र के राजा हेवतचंद और रानी मैना की कथा आज भी जनश्रुति में जीवंत है। नागदेवता के दर्शन से कालसर्प दोष के निवारण की भी मान्यता है। इसी आस्था के चलते हजारों श्रद्धालु हर साल इस दस दिवसीय यात्रा में शामिल होते हैं।
आज नागपंचमी को होगा समापन, फिर एक वर्ष का इंतजार
इस वर्ष मंदिर के पट 19 जुलाई को खोले गए थे। आज नागपंचमी की संध्या आरती के साथ मंदिर फिर एक साल के लिए बंद हो जाएगा। अब अगले वर्ष ही कोई इस रहस्यमयी गुफा में प्रवेश कर सकेगा।