भोपाल : भाजपा और कांग्रेस के कई प्रभावशाली बागियों को टिकट देने वाली बसपा यह मानकर चल रही है कि वह लगभग दो दर्जन सीटें जीत सकती है। वह रणनीति बुनने में जुट भी गई है कि यदि वह राज्य में तीसरी ताकत बनी तो आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस-बसपा गठबंधन को समझौते के केंद्र में रखकर सत्ता में मजबूत भागीदारी का प्रस्ताव भी कांग्रेस को दे सकती है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीधी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही नजर आ रही है, लेकिन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनाव में दलित-आदिवासी वोटबैंक के भरोसे ताल ठोंकने वाली बसपा को आस है कि इस बार सत्ता के गठन में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। भाजपा और कांग्रेस के कई प्रभावशाली बागियों को टिकट देने वाली बसपा यह मानकर चल रही है कि वह लगभग दो दर्जन सीटें जीत सकती है।
वह रणनीति बुनने में जुट गई है कि यदि वह राज्य में तीसरी ताकत बनी तो आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस-बसपा गठबंधन को समझौते के केंद्र में रखकर सत्ता में मजबूत भागीदारी का प्रस्ताव भी कांग्रेस को दे सकती है। दलित आबादी की पर्याप्त संख्या के चलते मध्य प्रदेश के विंध्य और उत्तर प्रदेश से सटे बुंदेलखंड क्षेत्र में बसपा का कुछ प्रभाव है।
बसपा के 183 तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के 45 प्रत्याशी मैदान में
इसके बलबूते वह पूर्व में यहां अधिकतम 11 प्रतिशत वोटों के साथ 11 विधायक भी बना चुकी है। बेशक, 2018 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत मात्र 6.42 प्रतिशत रहा और सिर्फ दो ही विधायक जीते, लेकिन इस बार उसने आदिवासियों में प्रभाव रखने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ मिलकर समीकरण बनाने का प्रयास किया है। बसपा के 183 तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के 45 प्रत्याशी मैदान में हैं।
सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है, लेकिन बसपा की उम्मीदों को दो कारणों से सांसें मिल रही हैं। पहली बात तो यह कि 2018 के विधानसभा चुनाव में दस हजार से कम वोटों के अंतर से हार-जीत वाली सीटों में से लगभग 90 ऐसी थीं, जिन पर बसपा और जीजीपी कई पर तीसरे और कुछ पर दूसरे स्थान पर रहीं। इसके अलावा इस बार बसपा ने भाजपा और कांग्रेस के कई ऐसे बागियों को प्रत्याशी बनाया है, जिनका क्षेत्रीय राजनीतिक प्रभाव भी है।
बसपा लगभग दो दर्जन सीटों पर जीत की आस लगाए बैठी
दलित-आदिवासी वोटों का गठजोड़ और इन क्षेत्रीय प्रभाव वाले नेताओं के अपने वोट से बसपा लगभग दो दर्जन सीटों पर जीत की आस लगाए बैठी है। इसी आस के साथ उसने रणनीति बुनना भी शुरू कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, यदि भाजपा या कांग्रेस पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं करती हैं और बसपा दस-पंद्रह सीटें जीत लेती है तो उसके बिना सरकार नहीं बन सकेगी। ऐसे में बसपा दोस्ती का हाथ कांग्रेस की ओर बढ़ाएगी, जैसा कि वह पहले भी कर चुकी है। वह कांग्रेस के साथ डील कर सकती है कि उसे मध्य प्रदेश की सत्ता में मजबूत भागीदारी दी जाए तो वह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ उत्तर प्रदेश के लिए गठबंधन कर सकती है।