Malegaon Blast : हिंदू आतंकवाद का भ्रम और न्याय का फैसला – अब ज़िम्मेदारी किसकी?

मालेगांव ब्लास्ट केस में भोपाल की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सातों आरोपियों को बरी किए जाने के बाद एक बार फिर हिंदू आतंकवाद की बहस देश की सियासत और समाज के केंद्र में आ खड़ी हुई है। इस निर्णय के बाद भाजपा हमलावर है और कांग्रेस की उस पुरानी राजनीतिक भाषा पर सवाल खड़े कर रही है, जिसमें “भगवा आतंकवाद” जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ था।

सुप्रीम न्यायपालिका की निगरानी में चले एनआईए कोर्ट का यह फैसला कानून के दायरे में अंतिम माना जाएगा, परंतु इससे उपजे प्रश्न सिर्फ न्यायिक दायरे तक सीमित नहीं हैं – वे राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक विमर्श की मांग करते हैं।

क्या राजनीतिक भाषा ने देश को बाँटा?

यह सत्य है कि किसी भी प्रकार के आतंकवाद का धर्म से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। पर जब “हिंदू आतंकवाद” जैसे शब्द राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बने, तब उन्होंने समाज में एक धार्मिक असहमति की दरार गहराई। भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने जब यह कहा कि “कांग्रेस ने इस्लामिक आतंकवाद पर पर्दा डालने के लिए हिंदू आतंकवाद शब्द गढ़ा”, तो वह राजनीतिक प्रतिक्रिया थी – परंतु यह एक महत्वपूर्ण नैतिक प्रश्न भी है कि क्या आतंकवाद को राजनीतिक चश्मे से देखने की संस्कृति ने देश को और अधिक बाँट दिया?

साध्वी प्रज्ञा: एक राजनीतिक और आध्यात्मिक व्यक्ति की पीड़ा

एनआईए कोर्ट के बाहर साध्वी प्रज्ञा का बयान, “मैं जीवित हूं, क्योंकि मैं संन्यासी हूं,” न केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा को व्यक्त करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे राजनीति, धर्म और जांच एजेंसियों के गठजोड़ ने एक व्यक्ति के जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया।
अगर कोई निर्दोष साबित होता है, तो उसके जीवन के खोए वर्षों की पुनर्प्राप्ति असंभव होती है। यह न्यायिक क्लीन चिट कोई मुआवज़ा नहीं देती – न सामाजिक बहिष्कार का, न मानसिक यातना का।

क्या कांग्रेस माफी मांगे?

यह प्रश्न अब केवल राजनीतिक शिष्टाचार का नहीं है, बल्कि राजनीतिक नैतिकता का भी है। अगर अदालत ने यह पाया कि अभियुक्तों के विरुद्ध सबूत नहीं हैं, और यदि यह प्रमाणित होता है कि पूरी प्रक्रिया राजनीतिक पूर्वग्रहों से प्रेरित थी, तो यह देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी से एक आत्ममंथन की अपेक्षा करता है।
सिर्फ कांग्रेस नहीं, बल्कि सभी राजनीतिक दलों को यह सोचने की ज़रूरत है कि क्या वे जांच एजेंसियों को स्वतंत्र रखते हैं या उन्हें सत्ता के औजार में बदल देते हैं?

भगवा पर सवाल या पूर्वाग्रह?

यह भी समझने की ज़रूरत है कि “भगवा आतंकवाद” शब्द ने किस प्रकार धार्मिक प्रतीकों को संदेह के घेरे में ला खड़ा किया। यदि आज अदालत यह कह रही है कि साध्वी प्रज्ञा निर्दोष हैं, तो यह देश की न्यायिक व्यवस्था की मजबूती है – लेकिन साथ ही, यह भी चेतावनी है कि धार्मिक प्रतीकों और पहचानों को राजनीतिक हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए।

मालेगांव केस में आया फैसला केवल कानूनी निष्कर्ष नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र के सामने रखा गया एक आईना है। इसमें वह भी दिखता है कि राजनीति ने कभी न्याय के रास्ते में रुकावट डाली, और यह भी दिखता है कि आखिरकार न्याय ने देर से सही, पर निर्णय दिया।
अब ज़रूरत है कि हर पक्ष – सत्ता और विपक्ष – इस निर्णय को राजनीतिक हथियार नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर मानें।

मालेगांव ब्लास्ट केस: प्रमुख घटनाएं

1. 29 सितंबर 2008 – विस्फोट
महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में भीड़भाड़ वाले भीकू चौक इलाके में बम विस्फोट हुआ। यह हमला रमज़ान के महीने में हुआ और इसमें 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हुए।

2. अक्टूबर 2008 – पहला सुराग और गिरफ्तारियां
महाराष्ट्र एटीएस ने एक मोटरसाइकिल के इंजन नंबर के जरिए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को संदिग्ध पाया, जो पहले उनके नाम पर पंजीकृत थी।
इसके बाद साध्वी प्रज्ञा, सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय और कर्नल श्रीकांत पुरोहित सहित 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

3. 2011 – मामला एनआईए को सौंपा गया
महाराष्ट्र एटीएस से केस लेकर केंद्र सरकार ने इसकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी।

4. 2014 – सत्ता परिवर्तन और जांच का मोड़
केंद्र में बीजेपी सरकार आने के बाद कई अभियुक्तों को जमानत मिलने लगी। प्रज्ञा ठाकुर को 2017 में जमानत मिली, और उन्होंने बाद में राजनीति में प्रवेश किया।

5. 2017 – चार्जशीट में बदलाव
एनआईए ने अपनी पूरक चार्जशीट में कहा कि प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। हालांकि कोर्ट ने ट्रायल जारी रखने का आदेश दिया।

6. 2019 – प्रज्ञा ठाकुर लोकसभा पहुंचीं
भारतीय जनता पार्टी ने प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार बनाया, और उन्होंने चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश किया।

7. 2023 – अंतिम गवाहों के बयान
कोर्ट में अंतिम गवाहों के बयान लिए गए और बचाव पक्ष की जिरह पूरी हुई।

8. 30 जुलाई 2025 – फैसला
एनआईए की विशेष अदालत ने सभी 7 अभियुक्तों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका।

प्रमुख अभियुक्त

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर – पूर्व सांसद, अब भाजपा नेता

कर्नल श्रीकांत पुरोहित – भारतीय सेना के अधिकारी

मेजर रमेश उपाध्याय – सेवानिवृत्त सेना अधिकारी

सुुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, समीर कुलकर्णी – विभिन्न सामाजिक-संगठनों से जुड़े

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