Mahatma Gandhi Death Anniversary : हरिजन प्रवास पर बाबई आए थे गांधी जी…, बापू के मध्यप्रदेश से जुड़े किस्से

30 जनवरी साल 1948…देश के इतिहास में एक काले दिन के तौर पर दर्ज है। इसी दिन दिल्ली के बिड़ला हाउस परिसर में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी (उम्र 78 साल) की हत्या कर दी थी। भारत की आजादी में बापू के योगदान को कौन ही भुला सकता है। वह उस वक्त दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे। इसी वजह से भारत में उनकी पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर साल 30 जनवरी को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और तीनों सेनाओं के प्रमुख (सेना, वायु सेना और नौसेना) दिल्ली के राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

अहमदाबाद का साबरमती आश्रम छोड़ने के बाद महात्मा गांधी ने पुराने मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर के नजदीक वर्धा में अपना आश्रम बनाया था। गांधी जी का यह नया ठिकाना स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए देश की अघोषित राजधानी बना था। देश का पहला झण्डा सत्याग्रह नागपुर में ही हुआ, जिसका नेतृत्व माखनलाल चतुर्वेदी ने किया था। वे झण्डा सत्याग्रहियों का नेतृत्व करते हुए जबलपुर से नागपुर आए थे।

पहला दौरा- साल 1918 इंदौर…
इंदौर में साल 1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए आए महात्मा गांधी ने अपने भाषण में सार्वजनिक मंच से हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने की घोषणा की। इस अधिवेशन में दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिनिधि भेजने का फैसला लिया गया था। इसके लिए गांधी जी ने अपने बेटे देवदास गांधी और मोटूरि सत्यनारायण के साथ कई विद्वानों को चेन्नई भेजा था।

छुआछूत मुक्ति आंदोलन के सिलसिले में आए MP…
ऐतिहासिक पूना पैक्ट के बाद गांधी जी अपने ‘हरिजन दौरे’ के सिलसिले में मध्यप्रदेश में छठवें दौरे पर आए थे। इसमें गांधी जी ने दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर और धमतरी (अब छत्तीसगढ़ में) के अलावा कई जगहों का दौरा किया था। इस दौरे के सबसे अच्छे परिणाम वर्तमान छत्तीसगढ़ में मिले जहां अस्पृश्यता और जातिगत ऊंच-नीच को काफी हद तक समाप्त करने में कामयाबी मिली। हालांकि, इसकी सफलता के पीछे एक कारण यह भीथा कि वहां सुन्दरलाल शर्मा जैसे सहयोगी गांधी जी को मिले। पंडित शर्मा पहले से ही इस मुद्दे पर काम कर रहे थे। इसीलिए गांधी जी उन्हें गुरु मानते थे।

साल 1935 दूसरा इंदौर दौरा…
साल 1935 में गांधी जी हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए दूसरी बार इंदौर आए। इसी अधिवेशन में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग रखी गई। इसके साथ ही देवनागरी लिपि की महत्ता को स्वीकारते हुए इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ था।

नरसिंहपुर में मल्लाह ने पखारे पैर…
आम लोगों के बीच लोक देवता के रूप में गांधी जी की स्वीकार्यता का प्रमाण नरसिंहपुर जिले के बरमान घाट पर मिला। यहां मल्लाह ने गांधी जी के चरण पखारने के बाद ही नर्मदा नदी पार कराई थी। पहले गांधी जी पैर धुलवाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे, लेकिन मल्लाह के विशेष आग्रह के आगे आखिरकार उनको झुकना पड़ा था।

हरिजन प्रवास पर बाबई आए थे गांधी जी…
हरिजन प्रवास के दौरान महात्मा गांधी नर्मदापुरम जिले के बाबई (अब माखननगर) भी आए थे। बाबई का प्रवास इसलिए खास बना क्योंकि यहां गांधी जी ने ‘हरिजन कोष’ के लिए न तो कोई दान मांगा और न इस विषय पर कोई चर्चा की। यहां उन्होंने कहा कि वे उस माटी को सम्मान देने आए हैं, जिसने माखनलाल चतुर्वेदी जैसे सपूत को जन्म दिया।

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