कांग्रेस के दिग्गज अपने-अपने किले की दीवार बचाने में फंसे हुए हैं।
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लोकसभा चुनाव 2024 कांग्रेस की इस परेशानी से आजाद दिखाई दे रहा है, जिसमें उसे खंड खंड में विभाजित पार्टी की तोहमत झेलना पड़ती है। कुछ गुट सरदार अब कांग्रेस से छिटके हुए हैं तो कुछ चुनावी माला पहने हुए अपने-अपने किले की दीवारें संभालने में जुटे दिखाई दे रहे हैं। इस मिलीजुली स्थिति का असर यह है कि कांग्रेस अब तक गुटबाजियों से हुए नुकसान से इस बार कुछ हद तक बेफिक्र है।
प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी हमेशा इसके नुकसान का कारण बनती रही है। दिग्विजय सिंह, कमलननाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी से लेकर अजय सिंह राहुल, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव तक हर नेता अपना एक अलग गुट और अलग समर्थक टोली लिए बैठा है। एकता पाठ कई बार परोसा गया, लेकिन सारा दिन चले, अढ़ाई कोस की तर्ज पर इसके कभी सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाए। नतीजा कमजोरी के रूप में आया और कांग्रेस को पतन के रसातल तक पहुंच जाने के हालात बनते गए। कमजोरी के इन हालात में लोकसभा चुनाव 2024 पार्टी के लिए बड़ा राहत भरा साबित हो रहा है। कारण यह कहा जा सकता है कि गुटों की बटी सियासत के सरगना अलग अलग कारणों से अपनी व्यस्तता लिए बैठे हैं।
महत्वाकांक्षाओं के साथ कुछ बाहर
कांग्रेस में घुटन महसूस करते हुए यहां के एक बड़े गुट के अगुआ पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा से ताल मिला रहे हैं। पिता स्व. माधवराव सिंधिया का कांग्रेस दौर भी उनके समकालीन कांग्रेसी नेताओं से अलग थलग रहने में बीता था। अब ज्योतिरादित्य कांग्रेस में एक अलग धुरी अपने आसपास घुमाने की चाह में पार्टी से अलग जा बैठे हैं। उनके समकालीन नेताओं को सुकून हो गया कि आपसी संघर्ष के हालात से उन्हें निजात मिल गए हैं। ऐसे ही कुछ हालात बिना चुनाव लड़े बरसों जलवा कायम रखने वाले पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी भी कांग्रेस की खींचतान बढ़ाने से अब निवृत्त हो गए हैं। टिकट कटुआ के नाम से पुकारे जा रहे पचौरी अब भाजपा के प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं। हालांकि वे भाजपा के लिए किसी फायदे का सबब नहीं बनने वाले, लेकिन कांग्रेस का संतोष यह है कि उनकी गैर मौजूदगी बाकी नेताओं को सुकून से काम करने की आसानियां दे रही है।
दिग्गज अपना घर बचाने में जुटे
कांग्रेस की अगली पंक्ति के नेताओं में शुमार और अपना अपना गुट लिए बैठे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और पूर्व पीसीसी चीफ कांतिलाल भूरिया इस चुनाव में कांग्रेस को डिस्टर्ब करने के हालात से बाहर दिख रहे हैं। दिग्विजय राजगढ़ से, कमलनाथ बेटे नकुलनाथ के लिए छिंदवाड़ा से और कांतिलाल भूरिया अपनी रतलाम सीट से प्रत्याशी हैं। भाजपा की लहर के दौर में इन नेताओं के सामने अपनी सीट बचाने की मशक्कत लगी हुई है। इस हार जीत से उनका भविष्य तय होगा, यह भी निश्चित है।