
रीवा। मध्यप्रदेश में सरकारी तंत्र किस हद तक संवेदनहीन और भ्रष्ट हो चुका है, इसकी एक रूह कंपा देने वाली तस्वीर रीवा जिले से सामने आई है। यहां एक जीवित, विकलांग व्यक्ति को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया, इतना ही नहीं—उसका अंतिम संस्कार भी सरकारी रिकॉर्ड में कर दिया गया और अंत्येष्टि सहायता राशि निकाल ली गई।
सवाल यह नहीं कि गलती हुई, सवाल यह है कि यह किसकी साजिश थी?
यह चौंकाने वाला मामला रीवा जिले की मनगवा नगर पंचायत, वार्ड क्रमांक 14 का है। यहां रहने वाले रमेश साकेत 5 दिसंबर को शासकीय योजनाओं का लाभ लेने नगर पंचायत कार्यालय पहुंचे थे। लेकिन जो सच सामने आया, उसने उन्हें ही नहीं, पूरे प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर दिया।
“आप तो मर चुके हैं…”
आवेदन के दौरान नगर पंचायत कर्मचारियों ने रमेश साकेत को बताया कि उनकी मृत्यु 19 मार्च 2023 को हो चुकी है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक शासन की योजना के अंतर्गत ₹5,000 की अंत्येष्टि सहायता राशि स्वीकृत की गई, अंतिम संस्कार कराया गया और राशि बैंक खाते से निकाल भी ली गई।
यानी कागजों में रमेश साकेत की चिता जल चुकी थी, लेकिन असल जिंदगी में वह लाठी के सहारे अपने हक के लिए दफ्तर-दफ्तर भटक रहा था।
दुर्घटना ने छीनी चलने की ताकत, सिस्टम ने छीना वजूद
रमेश साकेत ने बताया कि वह एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए थे। पहले रीवा के संजय गांधी अस्पताल में इलाज चला, फिर नागपुर में उपचार कराया गया। दुर्घटना के बाद वह पूरी तरह विकलांग हो गए। इसी कारण वह शासन की योजनाओं का लाभ लेने नगर पंचायत पहुंचे थे।
लेकिन योजनाओं का लाभ मिलना तो दूर, सरकारी सिस्टम ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अंत्येष्टि के नाम पर खेल, साजिश की बू
फरियादी का आरोप है कि नगर पंचायत कर्मचारियों ने साजिश के तहत उन्हें कागजों में मृत दिखाया और अंत्येष्टि के नाम पर सरकारी राशि का दुरुपयोग किया। हैरानी की बात यह है कि अब तक उन्हें किसी भी शासकीय योजना का लाभ नहीं मिला, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में उनका अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ हो चुका है।
यह मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि मानवीय अधिकारों के कत्ल का है। कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश
मामले की गंभीरता को देखते हुए कलेक्टर प्रतिभा पाल ने जांच के आदेश देते हुए उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
लेकिन बड़ा सवाल अब भी कायम है—
मृत घोषित व्यक्ति को दोबारा जिंदा साबित कैसे किया जाएगा?
सरकारी रिकॉर्ड और ऑनलाइन पोर्टल की गलती या साजिश की जिम्मेदारी कौन लेगा?
अंत्येष्टि राशि किसने निकाली और कहां गई?
सिस्टम की कब्र से जिंदा निकला सवाल
रीवा का यह मामला बताता है कि सरकारी फाइलों में किसी को मार देना कितना आसान है। आज रमेश साकेत जिंदा है, कल किसी और की बारी हो सकती है। अगर जांच सिर्फ कागजों तक सिमट गई, तो यह मामला भी सिस्टम की फाइलों में दफन कर दिया जाएगा।