बेंगलुरु – कर्नाटक सरकार ने अपने जल संसाधनों और झीलों की सुरक्षा के लिए मार्च 2024 में एक अभिनव और तकनीक-आधारित पहल की शुरुआत की। झीलों की जियोटैगिंग परियोजना के अंतर्गत राज्य के सभी 41,875 जलाशयों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दर्ज करने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई गई है।
इस परियोजना को लघु सिंचाई और भूजल विकास विभाग द्वारा, सर्वेक्षण, बंदोबस्त और भूमि अभिलेख विभाग के सहयोग से क्रियान्वित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य राज्य की जल संरचनाओं की निगरानी को सशक्त बनाना है ताकि अतिक्रमण, जल प्रवाह और पर्यावरणीय खतरों पर वास्तविक समय में नजर रखी जा सके।
31 हजार से अधिक जलाशयों की हो चुकी है जियोटैगिंग
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2025 तक 31,033 जलाशयों को सफलतापूर्वक जियोटैग किया जा चुका है। साथ ही, राज्य भर में 7.7 लाख एकड़ में फैली 34,651 झीलों का सर्वेक्षण और मानचित्रण भी पूरा किया गया है।
इस प्रक्रिया में 42,678 एकड़ झील क्षेत्र पर अतिक्रमण की पहचान हुई, जिनमें से 28,750 एकड़ भूमि को पुनः प्राप्त किया जा चुका है। शेष अतिक्रमण को हटाने की प्रक्रिया अभी जारी है।
हसन सबसे आगे, बेल्लारी सबसे पीछे
विभिन्न जिलों की प्रगति में भी रोचक अंतर सामने आया है। हसन जिला ने अब तक सबसे अधिक जलाशयों की जियोटैगिंग की है, जबकि बेल्लारी जिला इस सूची में सबसे नीचे है। यह क्षेत्रीय प्रशासनिक दक्षता और स्थानीय भागीदारी में अंतर को दर्शाता है।
सामुदायिक भागीदारी बनी परियोजना की रीढ़
इस परियोजना की सबसे बड़ी ताकत उसकी सामुदायिक भागीदारी है। ग्राम पंचायतें न केवल झीलों की सीमाओं की पहचान में सहयोग कर रही हैं, बल्कि स्थानीय विवादों के समाधान और आंकड़ों की सत्यता सुनिश्चित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इससे यह परियोजना केवल सरकारी योजना न होकर जन-संवेदित अभियान बन गई है।
कानूनी प्रवर्तन और जलवायु योजनाओं से भी जुड़ा है डेटा
जियोटैगिंग के माध्यम से अब अतिक्रमण की पहचान डिजिटल डेटा से की जा सकती है, जिससे संबंधित अधिकारियों को जुर्माना लगाने और कानूनी कार्रवाई करने में सहूलियत हो रही है। यही डेटा अब सूखा लचीलापन, भूजल पुनर्भरण और जलवायु-प्रतिक्रिया योजनाओं को भी सशक्त बना रहा है।
इस प्रयास को कर्नाटक की जलवायु परिवर्तन कार्य योजना, बेंगलुरु जलवायु कार्रवाई और लचीलापन योजना, तथा विश्व बैंक की जल लचीलापन परियोजना के साथ जोड़ा गया है, जिससे यह पहल राज्य की दीर्घकालिक जल नीति का एक सशक्त अंग बन चुकी है।
भविष्य की राह
अधिकारियों का कहना है कि इस एकीकृत दृष्टिकोण से राज्य में बाढ़ नियंत्रण, जल भंडारण और शहरी-ग्रामीण जल आपूर्ति की दीर्घकालिक व्यवस्था सुदृढ़ होगी। यह मॉडल न केवल कर्नाटक, बल्कि पूरे देश के लिए जल संरक्षण के क्षेत्र में एक अनुकरणीय मिसाल पेश कर सकता है।