कलिहारी: एक औषधीय संजीवनी, अब गोंडा में बन रही किसानों की उम्मीद

गोंडा | विशेष संवाददाता

आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोगी हजारों वनस्पतियों में से कलिहारी (Gloriosa superba) एक ऐसी औषधीय बेल है, जो अब गोंडा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक चिकित्सा और आय के स्रोत के रूप में उभर रही है। इसे अग्निशिखा, लाल नागिनी और ग्लोरियोसा जैसे नामों से भी जाना जाता है।

औषधीय गुणों से भरपूर कलिहारी

स्थानीय वैद्य जमुना प्रसाद यादव के अनुसार, यह बेल प्राकृतिक रूप से पहाड़ी और वन क्षेत्रों में पाई जाती है, पर अब इसकी संवर्धित खेती भी शुरू हो गई है। इसके फूल आमतौर पर लाल, पीले और नारंगी रंगों के होते हैं, और इसकी बेल झाड़ियों या पेड़ों पर चढ़ जाती है। वैद्य यादव बताते हैं कि कलिहारी कई गंभीर बीमारियों के उपचार में उपयोग की जाती है, जैसे:

🔹 दांत दर्द: इसकी जड़ का लेप विपरीत अंगूठे पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। उदाहरणस्वरूप, यदि बाएं दांत में दर्द हो तो दाहिने अंगूठे पर लेप किया जाता है।

🔹 जोड़ों का दर्द: इसके अर्क से बने तेल की मालिश से गठिया एवं जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।

🔹 त्वचा रोग: इसके पत्ते और फूल त्वचा संक्रमण व खुजली में लाभकारी होते हैं।

🔹 बुखार: इसकी जड़ से बना काढ़ा तेज बुखार में असरदार होता है।

🔹 सांप-बिच्छू के काटने पर: आयुर्वेद में इसे विषनाशक माना गया है। इसका जड़-लेप विषैले डंक के स्थान पर लगाया जाता है।

सावधानी आवश्यक

कलिहारी एक शक्तिशाली औषधीय पौधा है लेकिन यह विषैला भी होता है। अतः इसकी मात्रा और प्रयोग विधि में त्रुटि नहीं होनी चाहिए। वैद्य यादव सलाह देते हैं कि बिना विशेषज्ञ परामर्श के इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।

खेती की नई संभावना

गोंडा और आसपास के इलाकों में अब कुछ जागरूक किसान कलिहारी की औषधीय खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें अच्छा आर्थिक लाभ हो रहा है, वहीं दुर्लभ औषधीय पौधों के संरक्षण की दिशा में भी यह एक सकारात्मक कदम है।

वैद्य यादव कहते हैं, “कलिहारी सिर्फ एक सजावटी बेल नहीं, बल्कि यह कई रोगों के लिए आयुर्वेद की संजीवनी है। यदि इसे जिम्मेदारी से उपयोग किया जाए, तो यह ग्रामीण स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था दोनों को नया बल दे सकती है।”

गोंडा जैसे कृषि प्रधान जिले में पारंपरिक आयुर्वेदिक पौधों की पहचान और उनकी खेती को बढ़ावा देना स्थानीय रोजगार, स्वास्थ्य जागरूकता और संस्कृति संरक्षण के लिहाज से अत्यंत आवश्यक है। कलिहारी इसका एक सशक्त उदाहरण बनकर उभर रही है।

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