पत्रकार पर हमला — लोकतंत्र पर हमला

जबलपुर में पत्रकार सुनील सेन पर हुआ जानलेवा हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर चोट है। लोकतंत्र की बुनियाद स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता है। जब कलम को खामोश करने के लिए गुंडों और बंदूकों का सहारा लिया जाने लगे, तो यह किसी एक पत्रकार की समस्या नहीं रह जाती, बल्कि पूरे समाज की चिंता का विषय बन जाती है।

सुनील सेन पर हुआ यह हमला सत्ता, पैसे और दबंगई के गठजोड़ की ओर साफ इशारा करता है। जिस तरह अस्पताल प्रबंधन और उससे जुड़े लोग खबर दबाने के लिए धमकियाँ दे रहे थे, और आखिरकार हमला करने तक पहुँच गए, वह इस बात का प्रमाण है कि सत्य को उजागर करना आज भी सबसे खतरनाक कामों में से एक है। सवाल उठता है — क्या सच लिखना अब गुनाह हो गया है?

इस घटना से पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। पत्रकार पर हमला करने वाले चाहे कितने भी रसूखदार क्यों न हों, उन्हें कानून के कठघरे तक लाना ही होगा। अन्यथा यह संदेश जाएगा कि पैसे और राजनीतिक पहुँच के दम पर कोई भी सच्चाई को दबा सकता है।

यह मामला केवल जबलपुर का नहीं है। पूरे देश में आए दिन पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं। कहीं उनकी हत्या कर दी जाती है, कहीं झूठे मुकदमों में फँसाया जाता है, और कहीं उनके परिवार तक को धमकियाँ दी जाती हैं। यह प्रवृत्ति खतरनाक है और सीधे-सीधे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने वाली है।

पत्रकारिता का काम सिर्फ सरकार या संस्थानों की गलतियों को उजागर करना नहीं, बल्कि जनता के हक़ की आवाज़ उठाना भी है। अगर पत्रकार डर कर चुप हो जाएँगे तो आम जनता की आवाज़ कौन बनेगा? इसलिए यह मामला किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज के अधिकारों का है।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि इस हमले की निष्पक्ष और कड़ी जांच कराए, दोषियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दिलवाए और पत्रकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। अगर सच लिखने वालों की आवाज़ दब गई तो लोकतंत्र का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।

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