आपका दिया हुआ टेक्स्ट जन्माष्टमी की पौराणिक पृष्ठभूमि और माखनचोर कृष्ण की कथा को विस्तार से बताता है। अगर इसे त्योहार-विशेष लेख या पौराणिक कथा-आधारित फीचर स्टोरी की तरह सजाकर लिखा जाए तो यह पाठकों के लिए और रोचक हो सकता है।
मैं इसे थोड़ा संवारा हुआ, उत्सवमय और कथात्मक अंदाज़ में ऐसे पेश कर रहा हूँ—
जन्माष्टमी और माखनचोर कान्हा की कथा
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देशभर में हर्षोल्लास से जन्माष्टमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इसी दिन द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस वर्ष यह पर्व शनिवार, 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। अपने बाल्यकाल की मनमोहक लीलाओं और नटखट स्वभाव से वे सभी के प्रिय बने। इसी कारण उन्हें मुरलीधर, गोपाला, नंदलाला, लड्डू गोपाल, कान्हा, कन्हैया जैसे अनेक नाम मिले। लेकिन एक नाम—माखनचोर—उनकी सबसे चंचल और प्यारी लीला की याद दिलाता है।
माखनचोर की कथा
गोकुल में मां यशोदा और नंदबाबा के आंगन में पले-बढ़े कान्हा को माखन अत्यंत प्रिय था। यशोदा रोज़ उन्हें ताजा माखन खिलातीं। एक दिन कान्हा अपने मित्र मधुमंगल के घर पहुंचे और कुछ खाने को मांगा। घर में केवल बासी कढ़ी थी, जिसे मधुमंगल ने खुद ही झाड़ी में छिपकर पी लिया।
जब कान्हा ने पूछा, तो मधुमंगल ने कहा—
“तुम्हें तो रोज़ माखन और दूध मिलता है, पर मैं निर्धन हूं और मैंने कभी माखन चखा तक नहीं।”
कान्हा ने वचन दिया—
“अब से मैं तुम्हें रोज़ माखन खिलाऊंगा।”
इसके बाद कान्हा और मधुमंगल ने मिलकर पड़ोसियों के घर से माखन चुराना शुरू कर दिया। दोनों मित्र माखन खाकर खुश होते, और यही आदत कान्हा के “माखनचोर” नाम का कारण बनी।
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मैया यशोदा और शरारत का राज़
जब पड़ोस की महिलाएं शिकायत करतीं कि कान्हा मटकी तोड़कर माखन चुरा रहे हैं, तो यशोदा पहले विश्वास नहीं करतीं। लेकिन एक दिन उन्होंने कान्हा को रंगे हाथ पकड़ लिया। गुस्से में पूछा—
“कन्हैया, माखन क्यों चुराते हो?”
कान्हा ने मासूम मुस्कान के साथ उत्तर दिया—
*“मैया, मैं चोरी नहीं करता।
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