याचिका में कहा गया था कि डॉ. प्रतीक सहित अन्य व्यक्तियों द्वारा चयन प्रक्रिया में प्रस्तुत दस्तावेज तथा जांच के लिए गठित आंतरिक रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया था। आईआईएफएम के प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा यह आवेदन खारिज कर दिया गया था, जिसके कारण सीआईसी के समक्ष अपील दायर की गई थी। सीआईसी ने भी आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(एच) तथा 11 में दिए गए प्रावधानों का हवाला देते हुए, बिना सहमति तीसरे पक्ष से संबंधित जानकारी देने से इंकार कर दिया।
एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि धारा 8(1)(एच) के प्रावधानों के तहत केवल वही सूचना रोकी जा सकती है जो जांच की प्रक्रिया, अपराधियों की गिरफ्तारी या अभियोजन में बाधा उत्पन्न करती हो। यह प्रावधान इस मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर लागू नहीं होते। धारा 8(1)(जे) के तहत ऐसी व्यक्तिगत सूचना प्रदान नहीं की जा सकती जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं हो।
इसी प्रकार, अधिनियम की धारा 11 के तहत जिस सूचना को तीसरे पक्ष द्वारा गोपनीय माना जाता है, उसके संबंध में नोटिस जारी किया जाना आवश्यक है। धारा 11 की उप-धारा (1) के प्रावधान के तहत, कानून द्वारा संरक्षित व्यापारिक और वाणिज्यिक गुप्त मामलों को छोड़कर, सार्वजनिक हित में मांगी गई जानकारी प्रदान की जा सकती है। मुख्य सूचना आयुक्त विनोद कुमार तिवारी द्वारा अधिनियम के प्रावधानों का गलत उल्लेख किया गया है।
एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को पंद्रह दिनों के भीतर निशुल्क जानकारी प्रदान करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को मुकदमे की लागत के रूप में 25 हजार रुपये प्रदान किए जाने के आदेश जारी किए गए हैं। यह राशि याचिकाकर्ता को आईआईएफएम के प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्रदान की जाएगी। याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष स्वयं रखा।