Jabalpur News : सीआईसी आदेश बेईमान और अयोग्य व्यक्तियों को बचाने का एक प्रयास – हाईकोर्ट

सूचना के अधिकार अधिनियम की गलत व्याख्या करते हुए केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा जानकारी देने से इंकार किए जाने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सीआईसी के आदेश से प्रतीत होता है कि बेईमान और अयोग्य व्यक्तियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत जयश्री दुबे की ओर से उक्त याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि वर्ष 2000 में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान द्वारा एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद पर चयनित व्यक्तियों को नियुक्ति प्रदान की गई थी। अधिकारियों द्वारा स्वीकार किया गया है कि एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर डॉ. प्रतीक माहेश्वरी की नियुक्ति अवैध थी, क्योंकि उनके पास आवश्यक योग्यता नहीं थी। नियुक्तियों की जांच के लिए दो आंतरिक समितियां गठित की गई थीं, जिसके बाद डॉ. प्रतीक सहित अन्य चयनित व्यक्तियों को कार्यमुक्त कर दिया गया था।

याचिका में कहा गया था कि डॉ. प्रतीक सहित अन्य व्यक्तियों द्वारा चयन प्रक्रिया में प्रस्तुत दस्तावेज तथा जांच के लिए गठित आंतरिक रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया था। आईआईएफएम के प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा यह आवेदन खारिज कर दिया गया था, जिसके कारण सीआईसी के समक्ष अपील दायर की गई थी। सीआईसी ने भी आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(एच) तथा 11 में दिए गए प्रावधानों का हवाला देते हुए, बिना सहमति तीसरे पक्ष से संबंधित जानकारी देने से इंकार कर दिया।

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि धारा 8(1)(एच) के प्रावधानों के तहत केवल वही सूचना रोकी जा सकती है जो जांच की प्रक्रिया, अपराधियों की गिरफ्तारी या अभियोजन में बाधा उत्पन्न करती हो। यह प्रावधान इस मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर लागू नहीं होते। धारा 8(1)(जे) के तहत ऐसी व्यक्तिगत सूचना प्रदान नहीं की जा सकती जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं हो।

इसी प्रकार, अधिनियम की धारा 11 के तहत जिस सूचना को तीसरे पक्ष द्वारा गोपनीय माना जाता है, उसके संबंध में नोटिस जारी किया जाना आवश्यक है। धारा 11 की उप-धारा (1) के प्रावधान के तहत, कानून द्वारा संरक्षित व्यापारिक और वाणिज्यिक गुप्त मामलों को छोड़कर, सार्वजनिक हित में मांगी गई जानकारी प्रदान की जा सकती है। मुख्य सूचना आयुक्त विनोद कुमार तिवारी द्वारा अधिनियम के प्रावधानों का गलत उल्लेख किया गया है।

एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को पंद्रह दिनों के भीतर निशुल्क जानकारी प्रदान करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को मुकदमे की लागत के रूप में 25 हजार रुपये प्रदान किए जाने के आदेश जारी किए गए हैं। यह राशि याचिकाकर्ता को आईआईएफएम के प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्रदान की जाएगी। याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष स्वयं रखा।

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