
नई दिल्ली. देश में चुनावी पारदर्शिता को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि उनकी पार्टी ने कर्नाटक की एक लोकसभा सीट की पूरी मतदाता सूची को डिजिटल फॉर्मेट में बदलकर उसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पकड़ी है। राहुल ने इसे ‘चुनाव चोरी की एक सोची-समझी प्रणाली’ करार दिया।
राहुल गांधी ने कहा, “उन्होंने हमें मतदाता सूची नहीं दिखाई, हमने उसे डिजिटाइज किया। छह महीने में एक पूरी प्रणाली का पर्दाफाश किया है — कैसे वोट जोड़े जाते हैं, कौन वोट देता है और नए वोटर कहाँ से लाए जाते हैं।”
बिहार में 70 लाख से ज्यादा नाम संदिग्ध!
राहुल गांधी का बयान उस वक्त आया जब बिहार में चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के तहत यह सामने आया कि
🔹 52 लाख मतदाता पते से गायब हैं
🔹 18 लाख मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है, फिर भी नाम सूची में दर्ज हैं
विपक्षी दलों का आरोप है कि यह केवल तकनीकी गलती नहीं है, बल्कि सोची-समझी वोट ट्रिमिंग है। कांग्रेस का दावा है कि इससे एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्गों के वोट हटा दिए गए हैं।
वोटर लिस्ट पर क्यों उठते हैं सवाल?
भारत में मतदाता सूची अभी भी ज़्यादातर कागज आधारित होती है। जबकि डिजिटल इंडिया के दौर में यह बात चौंकाती है कि देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में डिजिटल पारदर्शिता का अभाव है।
कोई नागरिक तभी जान पाता है कि उसका नाम सूची में है या नहीं, जब वह मतदान केंद्र पर पहुंचता है
सूची में नाम हटाने या जोड़ने की प्रक्रिया में भी राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं
पारदर्शी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेटा अपलोड नहीं होने से जनता और मीडिया दोनों अंधेरे में रहते हैं
चुनाव आयोग की चुप्पी पर सवाल
राहुल गांधी का दावा है कि महाराष्ट्र में भी करीब 1 करोड़ नए मतदाता अचानक आए, जिससे चुनाव का पूरा समीकरण बदल गया।
उन्होंने कहा, “हमने चुनाव आयोग से वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग की, उन्होंने कानून ही बदल दिया।”
क्या हो सकते हैं समाधान?
विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है कि भारत में मतदाता सूची को पूरी तरह डिजिटल और सार्वजनिक बनाया जाए।
इसके लिए जरूरी कदम हो सकते हैं:
✔️ सूची को वेबसाइट और ऐप के ज़रिए आम जनता के लिए सुलभ बनाया जाए
✔️ हर बदलाव पर डिजिटल रिकॉर्ड रखा जाए — किसका नाम, किसने, कब, और क्यों जोड़ा/हटाया
✔️ डेटा साइंस से अनियमित पैटर्न की पहचान की जाए — जैसे अचानक एक मोहल्ले में हजारों वोट कैसे जुड़ गए
✔️ किसी स्वतंत्र डेटा ऑडिट संस्था द्वारा समय-समय पर जांच की जाए